Sunday, January 10, 2016

तुम ब्राम्हण जाति के नहीं हो बल्कि "शूद्र" जाति के हो

सृष्टि और ब्राह्मण
वेद में गार्गी नामक एक विदुशी अपने गुरू
से पूछती है कि पृथ्वी कैसे निर्माण हुई?
गुरू जवाब देता है ब्रह्मा ने पृथ्वी
निर्माण की। गार्गी पुछती है,
ब्रह्मा को किसने पैदा किया? गुरू
जवाब देता है कि ब्रह्मा स्वयंभू है।
गार्गी तीसरा सवाल पूछती है कि
यदि ब्रह्मा स्वयंभू है तो पृथ्वी स्वयंभू
क्यों नहीं है? वेदों को जानने वाले उस
पंडित ने गार्गी से कहा, आगे और सवाल
करोगी तो सिर को धड से अलग कर दिय
जाएगा। जो बताया गया उसे मानो,
जानने की कोशीश मत करो। 'मानो'
इस सिद्धान्त में व्यक्तिगत स्वतंत्रता,
मानसिक स्वतंत्रता नहीं है। 'जानो' में
व्यक्तिगत स्वतंत्रता है, मानसिक
स्वतंत्रता है। जो व्यक्ति मानसिक रूप से
स्वतंत्र होता है वही वास्तविक रूप से
स्वतंत्र है।
'मानो मत! जानो', यह बुद्ध का
सिद्धान्त है ।
शिकागो में विवेकानन्द
शिकागो में जब" विश्व धर्म" सम्मेलन का
आयोजन 1893 में हो रहा था तब स्वामी
विवेकानन्द वही मौजूद थे। उन्होने
आयोजकों से विश्व धर्म सम्मेलन में भाषण
देने की इजाजत मांगी, तो आयोजकों ने
उनसे हिन्दू धर्म के प्रवक्ता होने का
प्रमाण पत्र मांगा, तो स्वामी
विवेकानन्द ने वहां शिकागो से भारत
के शंकराचार्य को तार भेजा और कहा
की मुझे हिन्दू धर्म का प्रवक्ता होने
का प्रमाण पत्र भिजवाने का कष्ट करें।
इस पर शंकराचार्य (जो की ब्राम्हण
जाति की आरक्षित उपाधि है) ने
स्वामी विवेकानन्द को कहा की, "तुम
ब्राम्हण जाति के नहीं हो बल्कि
"शूद्र" जाति के हो; अत: तुम्हें हिन्दूओ का
प्रवक्ता नहीं बनाया जा सकता है।"
शंकराचार्य के एसे जातिवादी और
भेदभाव से स्वामीजी का मन उदास हो
गया । वे ब्राम्हणों के इस व्यवहार से
काफी दुखी हुवे ।
स्वामीजी की पीड़ा देख कर वहां
शिकागो में मौजूद श्रीलंका से आए
"बौद्ध धर्म " के प्रवक्ता अनागरिक
धम्मपाल बौद्ध जी ने स्वामीजी को
अपनी ओर से एक सहमति पत्र दिया की
स्वामी विवेकानन्द विद्वान है ,एवं
ओजस्वी वक्ता है। इन्हें धरम ससंद मै अपनी
बातें कहने का मौका दिया जाये। इस
तरह स्वामी जी को ब्राम्हणों ने तो
हिन्दू धर्म पर बोलने का मौका इसलिये
नहीं दिया क्योकी वे जाति एवं वर्ण
व्यवस्था में सबदे निम्न पायदान पर आते है।
इस तरह शास्त्रों में उल्लेख होने के कारण
स्वामीजी को शिकागो की धर्म
ससंद से बोलने के लिये बामनो ने अधिकृत
नहीं किया। वही भारत के
मूलनिवासी महामानव गौतमबुद्ध के
अनुयायियों ने उनसे भेदभाव नहीं किया
और अपनी सिफारिशों पर उन्हें भाषण
करने का मौका दिया। विवेकानंद को
बोलने के लिए धम्मपाल के भाषण के समय में
से सिर्फ पांच मिनट दिये गये। उस पाच
मिनट में स्वामिजी ने सिर्फ बौद्ध धर्म
का ही गुणगान गाया। इस लिए उनको
सर्वोत्तम
वक्ता का इनाम मिला ।
बामनो के दुरवयवहार के कारण ही
स्वामी जी ने अपनी पुस्तक "भारत का
भविष्य" में कहा है कि, यदि भारत का
भविष्य निर्माण करना हो तो
ब्राम्हणों को पैरों तले कुचल डालो
...........
और बौद्ध धर्म के उनपर हुए उपकार के कारण
वे बाद में जिंदगी भर बौद्ध धर्म का
प्रचार करते रहे। 
🌹🌹🌹भंते दीपरतन 🌹🌹🌹

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