नमो बुद्धाय ।
पंचशील के पालन से मनुष्य प्रज्ञा , शील , मैत्री , करुणा जैसे मूल्यों की स्थापना में सहयोग देता है और इस प्रकार समाज में शांति व अहिंसा की स्थापना कर सकता है।
उसका यह प्रयास बुद्ध के उपदेश ' मानव के हित के लिए , मानव के सुख के लिए ' के अनुरूप माना जाता है। पंचशील के माध्यम से मनुष्य समाज एवं राष्ट्र का सर्वांगीण विकास करते हुए , उन्हें मंगलमय बना सकता है।
आज भारत में हिंसा का दौर बढ़ रहा है। दहेज के कारण होने वाली घटनाओं व नागरिकों की हत्याओं में काफी वृद्धि हो रही है। भ्रूण हत्या व मांसाहार के लिए की जाने वाली हत्याओं का औचित्य नहीं दिखाई देता। हिंसा और हत्या की प्रवृत्ति बढ़ रही है।
इस स्थिति को देखकर संवेदनशील व्यक्ति सिहर उठता है। इस स्थिति को बुद्ध के कथन का पालन करके समाप्त किया जा सकता है। बुद्ध कहते हैं , ' जैसा मैं हूं , वैसे ही ये प्राणी भी हैं , जैसे ये प्राणी हैं , वैसा ही मैं भी हूं। इस प्रकार अपने समान समझकर न तो किसी का वध करें और न कराएं। हिंसा करने वाला आर्य (श्रेष्ठ) नहीं होता। ' यही पंचशील का पहला शील है। आज देश में चोरी , डकैती , अपहरण , रिश्वत व भ्रष्टाचार काफी जोर पकड़ रहा है। इन अनैतिक कार्यों से देश पतन की ओर बढ़ रहा है।
इस पतन को भी पंचशील के पालन से रोका जा सकता है। समाज में व्यभिचार , बलात्कार व अप्राकृतिक यौन संबंध तेजी से बढ़ रहे हैं।
आत्मीय संबंधों का भी आदर नहीं हो रहा। यह नैतिक पतन की पराकाष्ठा है। पंचशील के अनुशीलन से व्यभिचार को समाप्त किया जा सकता है। समाज में झूठ व गाली-गलौज का प्रचलन तेजी से बढ़ रहा है , जिसके कारण मन-मुटाव , लड़ाई-झगड़े व हत्याएं तक हो जाती हैं। इससे अशांति बढ़ती है और मनुष्य के जीवन का विकास नहीं हो पाता।
इस संदर्भ में बुद्ध ने कहा है कि ' मनुष्य को असत्य , अधर्म , दुर्भाषित (बुरा) नहीं बोलना चाहिए। उसे सत्य , प्रिय , धर्मानुकूल व अच्छा बोलना चाहिए। मुख पर संयम रखना , मनन करके बोलना व मधुर भाषण करना चाहिए। ' वर्तमान युग में शराब व नशीले पदार्थों के सेवन का प्रचलन तेजी से बढ़ रहा है। जन्म , मरण , टीका , विवाह व पार्टियों में शराब का प्रयोग प्रतिष्ठा का द्योतक माना जाने लगा है।
बुद्ध ने अनेक जगह शराब की बुराई की है। वह कहते हैं ,' जो शराब पीते हैं , वे अपनी चिता स्वयं बनाते हैं।.मनुष्यों! शराब से सदा भयभीत रहना , क्योंकि यह बुराई , दरिद्रता व दुराचार की जननी है। ' पंचशील का पालन करके शराब से छुटकारा पाया जा सकता है।
एक कहावत है ,' जब धन खो गया , तो कुछ नहीं खोया , स्वास्थ्य खो गया तो कुछ खो गया , जब चरित्र खो गया , तो सब कुछ खो गया। '
अत: चरित्र निर्माण के लिए पंचशील का पालन आवश्यक है। एक अच्छे राष्ट्र और नागरिक की पहचान उसके उसके चरित्र और आचरण से होती है । इसलिए देश के सभी नागरिक तथागत बुद्ध के मार्ग पे चलते हुए पंचशील को अधिक से अधिक अपने जीवन में अपनाए और एक समृद्ध भारत का निर्माण करे ।
बुद्धम् शरणम् गच्छामि ।
धम्म शरणम् गच्छामि ।।
संघम् शरणम् गच्छामि ।।।
बुद्ध ही शुद्ध है । बुद्ध ही सत्य है ।
जय भारत ।
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