Thursday, January 28, 2016

बुद्ध प्रतिमाएं: बदल डाला तथागत का धर्म

बुद्ध प्रतिमाएं: बदल डाला तथागत का धर्म

15 December, 2012



आम लोगों के धर्म परिवर्तन की खबरें तो अकसर आती रहती हैं, लेकिन बिहार के नालंदा और बोधगया में बुद्ध प्रतिमाओं का ही धर्म परिवर्तन हो रहा है. यहां बौद्ध मूर्तियों को हिंदू मंदिरों में स्थापित कर उनकी हिंदू देवी-देवताओं की तरह पूजा-अर्चना हो रही है. गौतम बुद्ध की मूर्ति को तेलिया मसान की संज्ञा देकर तेल चढ़ाने, गोरैया बाबा के नाम पर बुद्ध की मूर्ति पर बलि देने, दारू चढ़ाने और देवी के नाम पर सिंदूर लगाए जाने जैसी बातें आम हैं. भगवान बुद्ध की मूर्तियों को ब्रह्मड्ढ बाबा, भैरों बाबा, विष्णु भगवान, बजरंग बली समेत कई हिंदू देवी-देवताओं के नाम पर पूजा जा रहा है.

नालंदा के वड़गांव में श्री तेलिया भंडार भैरों मंदिर के एक दृश्य पर गौर फरमाएं. यहां भगवान बुद्ध की विशाल मूर्ति स्थापित है और माना जाता है कि यहां सच्चे दिल से मांगी हर मन्नत पूरी होती है. यहां हर पहर लोगों का आना-जाना लगा रहता है और लोग बुद्ध की विशालकाय मूर्ति पर अपने बच्चों को मोटा होने, उनमें रिकेट्स, एनिमिया, सुखड़ा सहित कई तरह की बीमारियों से निजात दिलाने के लिए सरसों का तेल और सात प्रकार के अनाज चढ़ाते हैं. यह परंपरा वर्षों से चली आ रही है. यहां भगवान बुद्ध की तेलिया बाबा के नाम पर स्थापित मूर्ति की ख्याति स्थानीय स्तर ही नहीं, विदेशों में भी है. बड़ी संख्या में थाई और नेपाली बौद्ध यहां आकर मंत्र जाप करते हैं. बुद्ध की मूर्ति पर तेल चढ़ाते हैं और रूमाल या पेपर से मूर्ति पर लगाए गए तेल को पोंछकर अपने शरीर पर मालिश करते हैं.

वड़गांव के नवीन कुमार बताते हैं, ''श्री तेलिया भंडार भैरों मंदिर की व्यवस्था वड़गांव पंडा कमेटी करती है. मंदिर के चढ़ावे से यहां के विकास और व्यवस्था से जुड़े लोगों की रोजी-रोटी का इंतजाम किया जाता है.''

आस्था के नाम पर क्या हो रहा है, यह किसी से छिपा नहीं है लेकिन महाबोधि मंदिर प्रबंधकारिणी समिति, बोधगया के सचिव नंद जी दोरजी इसे लेकर एकदम साफ जवाब देते हैं, ''हम सिर्फ महाबोधि मंदिर की देखभाल करते हैं. बाहर क्या हो रहा है, इससे हमें कोई लेना-देना नहीं.'' समाजशास्त्री प्रभात कुमार शांडिल्य ने तो और भी चौंकाने वाली बात बताई. उनका कहना है, ''बोधगया स्थित महाबोधि प्रांगण में गौतम बुद्ध की पांच मूर्तियों को पांच पांडव के रूप में पूजा जा रहा है.''

गया जिले के नरौनी गांव के महादेव और गोरैया स्थान में बौद्ध स्तूप हैं. शादी या अन्य किसी धार्मिक आयोजन पर यहां के लोग गोरैया स्थान में स्थापित बुद्ध की मूर्ति पर तपावन या चढ़ावा के रूप में बकरा, मुर्गा या कबूतर की बलि देकर दारू चढ़ाना अनिवार्य बताते हैं. गोरैया स्थान के पुजारी राजकिशोर मांझी कहते हैं, ''यह परंपरा पूर्वजों से चली आ रही है.'' गया के ही नसेर गांव के ब्रह्म स्थान में ब्रह्म बाबा की नहीं बल्कि मुकुटधारी बुद्ध की मूर्ति स्थापित है, जिसे गांव के लोग ब्रह्म बाबा के नाम से वर्षों से पूजते आ रहे हैं. माधुरी कुमारी अपनी सास प्यारी देवी के साथ ब्रह्म बाबा (बुद्ध की मूर्ति) की आराधना के लिए आती हैं. माधुरी की 81 वर्षीया सास प्यारी देवी बताती हैं, ''हमारी सास भी ब्रह्म बाबा के नाम से ही पूजा करती थी.''

89 वर्षीय किशुन यादव के मुताबिक, मंदिर में स्थापित मूर्ति बुद्ध भगवान की है. मंदिर के मुख्य दरवाजे पर लगाये गये लोहे के गेट में बुद्ध भगवान ही लिखा हुआ है. लेकिन हम लोग वर्षों से बुद्ध भगवान को ब्रह्म बाबा के नाम पर पूजते आए हैं. आस्था यहीं खत्म नहीं होती. वे बताते हैं, ''ये जागृत ब्रह्म हैं. चोरों ने दो बार इस मूर्ति की चोरी करने की कोशिश की, लेकिन सफल नहीं हो सके.'' गांव के ही नंदकिशोर मालाकार बताते हैं, ''लोहे की रॉड को हुक बनाकर बुद्ध की मूर्ति को मंदिर में स्थापित किया गया है, ताकि चोर मूर्ति की चोरी न कर सके.'' यही नहीं, ग्रामीणों के आपसी सहयोग से ब्रह्म बाबा का मंदिर बनाया जा रहा है.

हालांकि बौद्ध मूर्तियों के इस हिंदूकरण को लेकर महाबोधि मंदिर मुक्ति आंदोलन समिति के राष्ट्रीय महासचिव भंते आनंद कहते हैं, ''बुद्ध को लोहे की बेडिय़ों में जकडऩा और हिंदू देवी-देवताओं की तरह पूजा करना बौद्धों का अपमान है.'' बौद्ध मूर्तियों के इस तरह हिंदू देवी-देवताओं के रूप में पूजे जाने की एक वजह उनकी उपेक्षा भी माना जाती है. शांडिल्य कहते हैं, ''जब बौद्ध धर्म का ह्रास हुआ तब जगह-जगह गांव में बिखरी मूर्तियों को अलग-अलग देवी-देवता के नाम से पूजा जाने लगा. कई जगह मंदिर भी बना दिए गए. यह काम लंबे समय से चला आ रहा है. यह सब बौद्ध धर्म को नष्ट करने की साजिश के तहत किया जा रहा है.''

दिल्ली स्थित जवाहरलाल नेहरू यूनिवर्सिटी में स्कूल ऑफ आर्ट्स ऐंड ऐस्टथेटिक्स में असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ. वाइ.एस अलोने इसे हिंदू साम्राज्यवाद कहते हैं. वे कहते हैं, ''इस बात का पता लगाया जाना जरूरी है कि कब और कैसे हिंदू बौद्ध मूर्तियों की पूजा करने लगे. यह हिंदुओं की ओर से बहुत ही सोचा-समझा कदम है. यह एक तरह से हिंदू साम्राज्यवाद का प्रतीक है.''

गुरुआ प्रखंड के ही दुब्बा गांव स्थित भगवती स्थान में बुद्ध की कई मूर्तियां और स्तूप हैं और कई यहां-वहां बिखरे पड़े हैं. मंदिर के अहाते में स्थापित बुद्ध की मूर्तियों की यहां के लोग अलग-अलग देवी-देवताओं के रूप में पूजा करते हैं. मंदिर के गर्भगृह में स्थापित आशीर्वाद मुद्रा में लाल कपड़ों से ढके बुद्ध की आदमकद मूर्ति को यहां की महिलाएं देवी मानकर पूजती हैं. मंदिर के बाहर स्थापित बुद्ध की ही मूर्ति को विष्णु भगवान और बजरंग बली के रूप में पूजा जाता है. दुब्बा गांव की उर्मिला देवी ने सपरिवार भगवती स्थान में देवी मां की पूजा की. उन्होंने मंदिर में देवी के रूप में स्थापित बुद्ध की मूर्ति को नाक से लेकर सिर के ऊपरी हिस्से तक सिंदूर लगाया और हिंदू रीति-रिवाज के अनुसार पूजा-अर्चना की. साथ में आई महिलाओं ने गीत से देवी की महिमा का गुणगान किया. दुब्बा के पूर्व मुखिया सूर्यदेव प्रसाद बताते हैं, ''अगर हम बुद्ध की इन मूर्तियों को हिंदू देवी-देवताओं के रूप में नहीं पूजते तो यह मूर्तियां भी नहीं बचतीं.''

गुरुआ प्रखंड के गुनेरी गांव में स्थित बुद्ध प्रतिमा की ठीक यही हालत है. यहां के लोग बुद्ध को भैरों बाबा के नाम पर पूजते हैं. गांव के ही सहदेव पासवान बताते हैं, ''पहले लोग इस मूर्ति पर दारू चढ़ाते और बलि देते थे. लेकिन जब से पुरातत्व विभाग ने गुनेरी को पर्यटन क्षेत्र घोषित किया है तब से दारू और बलि पर पाबंदी लग गई है. लेकिन आज भी बुद्ध भैरों बाबा के नाम पर ही पूजे जा रहे हैं.''

मगध के धार्मिक और सांस्कृतिक इतिहास पर शोध को अंजाम देने वाले डॉ. राकेश सिन्हा रवि ने बताया कि यहां के कई मंदिरों में हिंदू देवी-देवताओं के साथ स्थापित बुद्ध की मूर्तियों को अलग-अलग नामों से कुल देवता और लोक देवता के रूप में पूजा जा रहा है. दुब्बा, भूरहा, नसेर, गुनेरी, देवकुली, नरौनी, कुर्कीहार, मंडा, तारापुर, पत्थरकट्टी, जेठियन, औंगारी, कौआडोल, बिहटा, उमगा पहाड़, शहर तेलपा, तेलहाड़ा, गेहलौर घाटी में बुद्ध और हिंदू देवी-देवताओं में फर्क मिट गया है.

बौद्ध धर्म के इस हिंदूकरण का एक कारण बौद्ध धरोहर का इधर-उधर छितरा पड़ा होना भी है. संरक्षण की कोई व्यवस्था न होने के कारण लोग इस ऐतिहासिक धरोहर का इस्तेमाल अपने मन-माफिक कर रहे हैं.

मध्य विद्यालय दुब्बा परिसर में रखी गई बौद्ध काल की अर्द्धवृत्तिका पर महिलाएं मसाला पीसती हैं. विद्यालय परिसर में नीम के नीचे और इमामबाड़ा के पास रखे गए बौद्ध स्तूप का उपयोग यहां के लोग बैठने के लिए करते हैं. लोगों ने कई बौद्ध स्तूपों को अपने दरवाजे की शोभा के लिए स्थापित कर रखा है. अब्बास मियां ने अपनी नाली के पास बौद्ध स्तूप को इसलिए रख दिया है कि मिट्टी का कटान न हो. मोहम्मद मुस्तफा ने दरवाजे पर बैठने के लिए बौद्धकालीन अर्द्धवृत्तिका स्थापित कर रखी है. रामचंद्र शर्मा ने अनाज पीसने वाले मीलों में दो किलो से 20 किलो का बाट बौद्धकालीन पत्थर तोड़कर बनाया है. मध्य विद्यालय दुब्बा सहित गांव में निवास करने वाले हिंदू-मुसलमानों, दलितों और बडज़नों के घर-आंगनों में बौद्धकालीन कलाकृतियां, मूर्ति, स्तूप और अर्द्धवृत्तिका बहुतायत में बिखरे पड़े हैं.

भंते आनंद केंद्र सरकार पर बौद्ध स्थलों और बौद्धों की ओर ध्यान न देने का आरोप लगाते हैं. वे कहते हैं, ''भारतीय पुरातत्व विभाग को ऐसे स्थलों का सर्वेक्षण करवाकर विकास और बुद्ध से जुड़े अवशेषों को संरक्षित करना चाहिए. बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार बुद्ध के नाम पर कारोबार करना चाहते हैं. उन्हें बौद्धों की आस्था से कोई लेना-देना नहीं है. पटना में करोड़ों की लागत से बुद्ध स्मृति पार्क का निर्माण किया गया है, लेकिन जहां बुद्ध के अवशेष बिखरे हुए हैं, उसका संरक्षण भी नहीं हो रहा है.''

समाजसेवी रामचरित्र प्रसाद उर्फ विनोवा ने महाबोधि मंदिर प्रबंधकारिणी समिति, बोधगया और यहां के विदेशी महाविहारों पर टिप्पणी करते हुए कहा, ''बोधगया में जितने भी बौद्ध विहार हैं, वे बौद्ध धर्म के प्रति समर्पित नहीं हैं बल्कि इसे कारोबार बनाकर बैठे हैं.'' सबके अपने तर्क-वितर्क हो सकते हैं लेकिन यह बात हकीकत है कि विरासत का धर्म बदल रहा है

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