Thursday, January 28, 2016

बुद्ध प्रतिमाएं: बदल डाला तथागत का धर्म

बुद्ध प्रतिमाएं: बदल डाला तथागत का धर्म

15 December, 2012



आम लोगों के धर्म परिवर्तन की खबरें तो अकसर आती रहती हैं, लेकिन बिहार के नालंदा और बोधगया में बुद्ध प्रतिमाओं का ही धर्म परिवर्तन हो रहा है. यहां बौद्ध मूर्तियों को हिंदू मंदिरों में स्थापित कर उनकी हिंदू देवी-देवताओं की तरह पूजा-अर्चना हो रही है. गौतम बुद्ध की मूर्ति को तेलिया मसान की संज्ञा देकर तेल चढ़ाने, गोरैया बाबा के नाम पर बुद्ध की मूर्ति पर बलि देने, दारू चढ़ाने और देवी के नाम पर सिंदूर लगाए जाने जैसी बातें आम हैं. भगवान बुद्ध की मूर्तियों को ब्रह्मड्ढ बाबा, भैरों बाबा, विष्णु भगवान, बजरंग बली समेत कई हिंदू देवी-देवताओं के नाम पर पूजा जा रहा है.

नालंदा के वड़गांव में श्री तेलिया भंडार भैरों मंदिर के एक दृश्य पर गौर फरमाएं. यहां भगवान बुद्ध की विशाल मूर्ति स्थापित है और माना जाता है कि यहां सच्चे दिल से मांगी हर मन्नत पूरी होती है. यहां हर पहर लोगों का आना-जाना लगा रहता है और लोग बुद्ध की विशालकाय मूर्ति पर अपने बच्चों को मोटा होने, उनमें रिकेट्स, एनिमिया, सुखड़ा सहित कई तरह की बीमारियों से निजात दिलाने के लिए सरसों का तेल और सात प्रकार के अनाज चढ़ाते हैं. यह परंपरा वर्षों से चली आ रही है. यहां भगवान बुद्ध की तेलिया बाबा के नाम पर स्थापित मूर्ति की ख्याति स्थानीय स्तर ही नहीं, विदेशों में भी है. बड़ी संख्या में थाई और नेपाली बौद्ध यहां आकर मंत्र जाप करते हैं. बुद्ध की मूर्ति पर तेल चढ़ाते हैं और रूमाल या पेपर से मूर्ति पर लगाए गए तेल को पोंछकर अपने शरीर पर मालिश करते हैं.

वड़गांव के नवीन कुमार बताते हैं, ''श्री तेलिया भंडार भैरों मंदिर की व्यवस्था वड़गांव पंडा कमेटी करती है. मंदिर के चढ़ावे से यहां के विकास और व्यवस्था से जुड़े लोगों की रोजी-रोटी का इंतजाम किया जाता है.''

आस्था के नाम पर क्या हो रहा है, यह किसी से छिपा नहीं है लेकिन महाबोधि मंदिर प्रबंधकारिणी समिति, बोधगया के सचिव नंद जी दोरजी इसे लेकर एकदम साफ जवाब देते हैं, ''हम सिर्फ महाबोधि मंदिर की देखभाल करते हैं. बाहर क्या हो रहा है, इससे हमें कोई लेना-देना नहीं.'' समाजशास्त्री प्रभात कुमार शांडिल्य ने तो और भी चौंकाने वाली बात बताई. उनका कहना है, ''बोधगया स्थित महाबोधि प्रांगण में गौतम बुद्ध की पांच मूर्तियों को पांच पांडव के रूप में पूजा जा रहा है.''

गया जिले के नरौनी गांव के महादेव और गोरैया स्थान में बौद्ध स्तूप हैं. शादी या अन्य किसी धार्मिक आयोजन पर यहां के लोग गोरैया स्थान में स्थापित बुद्ध की मूर्ति पर तपावन या चढ़ावा के रूप में बकरा, मुर्गा या कबूतर की बलि देकर दारू चढ़ाना अनिवार्य बताते हैं. गोरैया स्थान के पुजारी राजकिशोर मांझी कहते हैं, ''यह परंपरा पूर्वजों से चली आ रही है.'' गया के ही नसेर गांव के ब्रह्म स्थान में ब्रह्म बाबा की नहीं बल्कि मुकुटधारी बुद्ध की मूर्ति स्थापित है, जिसे गांव के लोग ब्रह्म बाबा के नाम से वर्षों से पूजते आ रहे हैं. माधुरी कुमारी अपनी सास प्यारी देवी के साथ ब्रह्म बाबा (बुद्ध की मूर्ति) की आराधना के लिए आती हैं. माधुरी की 81 वर्षीया सास प्यारी देवी बताती हैं, ''हमारी सास भी ब्रह्म बाबा के नाम से ही पूजा करती थी.''

89 वर्षीय किशुन यादव के मुताबिक, मंदिर में स्थापित मूर्ति बुद्ध भगवान की है. मंदिर के मुख्य दरवाजे पर लगाये गये लोहे के गेट में बुद्ध भगवान ही लिखा हुआ है. लेकिन हम लोग वर्षों से बुद्ध भगवान को ब्रह्म बाबा के नाम पर पूजते आए हैं. आस्था यहीं खत्म नहीं होती. वे बताते हैं, ''ये जागृत ब्रह्म हैं. चोरों ने दो बार इस मूर्ति की चोरी करने की कोशिश की, लेकिन सफल नहीं हो सके.'' गांव के ही नंदकिशोर मालाकार बताते हैं, ''लोहे की रॉड को हुक बनाकर बुद्ध की मूर्ति को मंदिर में स्थापित किया गया है, ताकि चोर मूर्ति की चोरी न कर सके.'' यही नहीं, ग्रामीणों के आपसी सहयोग से ब्रह्म बाबा का मंदिर बनाया जा रहा है.

हालांकि बौद्ध मूर्तियों के इस हिंदूकरण को लेकर महाबोधि मंदिर मुक्ति आंदोलन समिति के राष्ट्रीय महासचिव भंते आनंद कहते हैं, ''बुद्ध को लोहे की बेडिय़ों में जकडऩा और हिंदू देवी-देवताओं की तरह पूजा करना बौद्धों का अपमान है.'' बौद्ध मूर्तियों के इस तरह हिंदू देवी-देवताओं के रूप में पूजे जाने की एक वजह उनकी उपेक्षा भी माना जाती है. शांडिल्य कहते हैं, ''जब बौद्ध धर्म का ह्रास हुआ तब जगह-जगह गांव में बिखरी मूर्तियों को अलग-अलग देवी-देवता के नाम से पूजा जाने लगा. कई जगह मंदिर भी बना दिए गए. यह काम लंबे समय से चला आ रहा है. यह सब बौद्ध धर्म को नष्ट करने की साजिश के तहत किया जा रहा है.''

दिल्ली स्थित जवाहरलाल नेहरू यूनिवर्सिटी में स्कूल ऑफ आर्ट्स ऐंड ऐस्टथेटिक्स में असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ. वाइ.एस अलोने इसे हिंदू साम्राज्यवाद कहते हैं. वे कहते हैं, ''इस बात का पता लगाया जाना जरूरी है कि कब और कैसे हिंदू बौद्ध मूर्तियों की पूजा करने लगे. यह हिंदुओं की ओर से बहुत ही सोचा-समझा कदम है. यह एक तरह से हिंदू साम्राज्यवाद का प्रतीक है.''

गुरुआ प्रखंड के ही दुब्बा गांव स्थित भगवती स्थान में बुद्ध की कई मूर्तियां और स्तूप हैं और कई यहां-वहां बिखरे पड़े हैं. मंदिर के अहाते में स्थापित बुद्ध की मूर्तियों की यहां के लोग अलग-अलग देवी-देवताओं के रूप में पूजा करते हैं. मंदिर के गर्भगृह में स्थापित आशीर्वाद मुद्रा में लाल कपड़ों से ढके बुद्ध की आदमकद मूर्ति को यहां की महिलाएं देवी मानकर पूजती हैं. मंदिर के बाहर स्थापित बुद्ध की ही मूर्ति को विष्णु भगवान और बजरंग बली के रूप में पूजा जाता है. दुब्बा गांव की उर्मिला देवी ने सपरिवार भगवती स्थान में देवी मां की पूजा की. उन्होंने मंदिर में देवी के रूप में स्थापित बुद्ध की मूर्ति को नाक से लेकर सिर के ऊपरी हिस्से तक सिंदूर लगाया और हिंदू रीति-रिवाज के अनुसार पूजा-अर्चना की. साथ में आई महिलाओं ने गीत से देवी की महिमा का गुणगान किया. दुब्बा के पूर्व मुखिया सूर्यदेव प्रसाद बताते हैं, ''अगर हम बुद्ध की इन मूर्तियों को हिंदू देवी-देवताओं के रूप में नहीं पूजते तो यह मूर्तियां भी नहीं बचतीं.''

गुरुआ प्रखंड के गुनेरी गांव में स्थित बुद्ध प्रतिमा की ठीक यही हालत है. यहां के लोग बुद्ध को भैरों बाबा के नाम पर पूजते हैं. गांव के ही सहदेव पासवान बताते हैं, ''पहले लोग इस मूर्ति पर दारू चढ़ाते और बलि देते थे. लेकिन जब से पुरातत्व विभाग ने गुनेरी को पर्यटन क्षेत्र घोषित किया है तब से दारू और बलि पर पाबंदी लग गई है. लेकिन आज भी बुद्ध भैरों बाबा के नाम पर ही पूजे जा रहे हैं.''

मगध के धार्मिक और सांस्कृतिक इतिहास पर शोध को अंजाम देने वाले डॉ. राकेश सिन्हा रवि ने बताया कि यहां के कई मंदिरों में हिंदू देवी-देवताओं के साथ स्थापित बुद्ध की मूर्तियों को अलग-अलग नामों से कुल देवता और लोक देवता के रूप में पूजा जा रहा है. दुब्बा, भूरहा, नसेर, गुनेरी, देवकुली, नरौनी, कुर्कीहार, मंडा, तारापुर, पत्थरकट्टी, जेठियन, औंगारी, कौआडोल, बिहटा, उमगा पहाड़, शहर तेलपा, तेलहाड़ा, गेहलौर घाटी में बुद्ध और हिंदू देवी-देवताओं में फर्क मिट गया है.

बौद्ध धर्म के इस हिंदूकरण का एक कारण बौद्ध धरोहर का इधर-उधर छितरा पड़ा होना भी है. संरक्षण की कोई व्यवस्था न होने के कारण लोग इस ऐतिहासिक धरोहर का इस्तेमाल अपने मन-माफिक कर रहे हैं.

मध्य विद्यालय दुब्बा परिसर में रखी गई बौद्ध काल की अर्द्धवृत्तिका पर महिलाएं मसाला पीसती हैं. विद्यालय परिसर में नीम के नीचे और इमामबाड़ा के पास रखे गए बौद्ध स्तूप का उपयोग यहां के लोग बैठने के लिए करते हैं. लोगों ने कई बौद्ध स्तूपों को अपने दरवाजे की शोभा के लिए स्थापित कर रखा है. अब्बास मियां ने अपनी नाली के पास बौद्ध स्तूप को इसलिए रख दिया है कि मिट्टी का कटान न हो. मोहम्मद मुस्तफा ने दरवाजे पर बैठने के लिए बौद्धकालीन अर्द्धवृत्तिका स्थापित कर रखी है. रामचंद्र शर्मा ने अनाज पीसने वाले मीलों में दो किलो से 20 किलो का बाट बौद्धकालीन पत्थर तोड़कर बनाया है. मध्य विद्यालय दुब्बा सहित गांव में निवास करने वाले हिंदू-मुसलमानों, दलितों और बडज़नों के घर-आंगनों में बौद्धकालीन कलाकृतियां, मूर्ति, स्तूप और अर्द्धवृत्तिका बहुतायत में बिखरे पड़े हैं.

भंते आनंद केंद्र सरकार पर बौद्ध स्थलों और बौद्धों की ओर ध्यान न देने का आरोप लगाते हैं. वे कहते हैं, ''भारतीय पुरातत्व विभाग को ऐसे स्थलों का सर्वेक्षण करवाकर विकास और बुद्ध से जुड़े अवशेषों को संरक्षित करना चाहिए. बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार बुद्ध के नाम पर कारोबार करना चाहते हैं. उन्हें बौद्धों की आस्था से कोई लेना-देना नहीं है. पटना में करोड़ों की लागत से बुद्ध स्मृति पार्क का निर्माण किया गया है, लेकिन जहां बुद्ध के अवशेष बिखरे हुए हैं, उसका संरक्षण भी नहीं हो रहा है.''

समाजसेवी रामचरित्र प्रसाद उर्फ विनोवा ने महाबोधि मंदिर प्रबंधकारिणी समिति, बोधगया और यहां के विदेशी महाविहारों पर टिप्पणी करते हुए कहा, ''बोधगया में जितने भी बौद्ध विहार हैं, वे बौद्ध धर्म के प्रति समर्पित नहीं हैं बल्कि इसे कारोबार बनाकर बैठे हैं.'' सबके अपने तर्क-वितर्क हो सकते हैं लेकिन यह बात हकीकत है कि विरासत का धर्म बदल रहा है

Tuesday, January 26, 2016

बोरिवली के संजय गांधी नैशनल पार्क में प्राचीन सात बौद्ध गुफाएं मिली हैं

बोरिवली के संजय गांधी नैशनल पार्क में प्राचीन सात बौद्ध गुफाएं मिली हैं। ये गुफाएं बौद्ध 'विहार' (जहां बौद्ध भिक्षु रहे) हैं। माना जा रहा है कि इनका निर्माण कन्हेरी गुफाओं से पहले और भिक्षुओं को बारिश से बचाने के लिए किया गया होगा।
हालांकि भारतीय पुरातात्विक सर्वेक्षण द्वारा इन गुफाओं के विस्तृत ब्योरे और दस्तावेजों की औपचारिक स्वीकृति मिलना अभी बाकी है, लेकिन इन्हें खोजने वाली टीम ने इनकी तारीख ईसा से एक शताब्दी पूर्व (1st Century BC) और पांचवीं-छठी शताब्दी ईसवी (5th-6th Century AD) के बीच बताई है। पिछले साल पुरातात्विक केंद्र, मुंबई विश्वविद्यालय और भारतीय संस्कृति विभाग द्वारा संयुक्त रूप से एक खुदाई कार्यक्रम के लिए बनाई गई तीन सदस्यीय टीम ने इन गुफाओं की खोज की है। इसका नेतृत्व विभाग के प्रमुख सूरज पंडित ने किया।
उनका कहना है, 'ये गुफाएं कन्हेरी गुफाओं से ज्यादा पुरानी हो सकती हैं क्योंकि इनकी बनावट साधारण है और इनमें जलाशय नहीं हैं जोकि कन्हेरी गुफाओं में मिले थे। हमें कुछ अखंड औजार मिले हैं जो कि ईसा से एक शताब्दी पूर्व चलन में थे। जलाशयों का न होना यह बताता है कि भिक्षु वहां मॉनसून के वक्त रहा करते थे।' उन्होंने बताया कि इन गुफाओं का मिलना कोई अचानक से हुई खोज नहीं, बल्कि एक सुनियोजित सर्वेक्षण का नतीजा है। खोज शुरू करने से पहले टीम ने तीन महीनें शोध किया जिसमें इलाके की भौगोलिक स्थिति और पानी के स्रोतों का अध्ययन शामिल था।
ईसा से पहली शताब्दी पूर्व और 10 शताब्दी के बीच बनीं कन्हेरी गुफाएं अपने जल प्रबंधन और बारिश के पानी को सिंचाई के उपयोग में आने के लिए प्रसिद्ध हैं।

Tuesday, January 19, 2016

प्रत्येक बुद्ध के अनुयायी के कर्तव्य

प्रत्येक बुद्ध के अनुयायी के कर्तव्य:

1. बौद्धों के घरों में तथागत बुद्ध, सम्राट चन्द्रगुप्त, सम्राट अशोक, बोधिसत्व  क्रान्तिवीर ज्योतिबा फुले एवं बौद्ध /  विद्वानों के अलावा अन्य किसी भी देवी-देवताओं के कलैन्डर, तस्वीरें, मूर्तियां आदि नहीं होने चाहिये.

2. किसी भी परिस्थिति में शराब, गांजा, अफीम, नस, तम्बाखू, बीडी, सिग्रेट, ड्रग्स आदि नशीले पदार्थों का सेवन वर्जित है.

3. किसी जीव की हत्या न करें और न इसके लिये किसी को प्रेरित करें.

4. मद्यपान, नशीले पदार्थ, जहर एवं हथियार का व्यापार निषिद्ध है.

5. गले, कमर या बांह में काला धागा, गंडा, ताबीज आदि अछूतपन एवं अंधविश्वासी होने का प्रतीक है अतः उक्त का इस्तेमाल नहीं करना चाहिये.

6. किसी नदी, तालाब या समुद्र को पवित्र मानकर उसमें पैसे डालना, नहाना या हाथ जोड़ना अन्धविश्वास का द्योतक है तथा नदियों आदि में पैसे डालना राष्ट्रीय मुद्रा का दुरुपयोग है, अतः ऐसे कार्य न करें. 

7. भूत-प्रेत, टोना-टोटका, झाड़-फुक, पीर-फकीर, सूर्य-ग्रहण, चन्द्र-ग्रहण, अंधेरी-उजाली या ग्रह शान्ति हेतु यज्ञ एवं हवन करना, संध्या को बत्ती जलने पर प्रणाम करना, ग्रह, नक्षत्र के हिसाब से अंगूठी में नग पहिनना, छींक आने पर भगवान का नाम लेना आदि अंधश्रद्धा के प्रतीक हैं, अतः ऐसे कार्य नहीं करने चाहिये.

8. किसी भी धार्मिक, सामाजिक विवाह आदि में नारियल, सिन्धूर, तिलक, अष्टगंध, चावल आदि का प्रयोग न करें. चावल एक खाद्य पदार्थ है अतः इसका दुरुपयोग न करें.

9. विवाह के समय वर-वधू के पैर छूना दासता का प्रतीक है अतः ऐसा न करें. 

10. भिक्खू शील व मैत्री देते हैं अतः वैवाहिक कार्य बौद्ध भिक्खु से न करवायें वर्ना पण्डा, पादरी, पुजारी, पुरोहित, और भिक्खु में कोई फर्क नहीं रह जायेगा. 

11. बौद्ध त्योहारों के दिन अपने व्यक्तिगत आयोजन यथा गृह-प्रवेश आदि न करायें. इन्हें अन्य तिथियों में करायें वरना हमारे धार्मिक त्योहारों का महत्व कम हो जायेगा.

12. विधुर एवं विधवा विवाह को प्रोत्साहित करें. 

13. विवाह रात्रि में न करें. विवाह में नाच-गाना, मांसाहार, मदिरापान वर्जित है. दहेज लेना और देना अनुचित है. विवाह के अवसर पर सिर्फ वर-वधू को ही त्रिशरण एवं पंचशील लेना चाहिये, विवाह में उपस्थित सभी को नहीं. चावल का प्रयोग टीका बनाने या फेंकने हेतु न करें. 

14. विवाह मंडप में नाच-गान आदि नहीं करना चाहिये. 
15. दान राशि 11, 21, 51, 101, 151, 201, 501 आदि आंकड़ों में न दें. बौद्ध परम्परा में इसका कोई स्थान नहीं है. 

16. शवयात्रा में खाड पूजना अर्थात अर्थी के चारों कोनों में धान, कौड़ी, पैसा आदि रखना, शव को गुलाल हल्दी आदि लगाना, लाही, पैसा आदि फेंकना अंध श्रद्धा है. 

17. मृतक के मस्तक पर सिक्का रखना, सदगति हेतु मुह में गंगाजल डालना, परित्राण का पानी, सोने का पानी, तुलसी जल आदि डालना अंध श्रद्धा है. 

18. सामूहिक भोज खुशियों को प्रदर्शित करता है. किसी भी व्यक्ति की मृत्यु पर दुःख होता है. अतः तेरहवीं (मृतक भोज) बन्द करना अनिवार्य है. 

19. किसी भी धार्मिक स्थल के सामने गाड़ी का हार्न बजाना अन्ध श्रद्धा है. 

20. वंदना के समय सिर पर टोपी, पगड़ी, मुकुट या साड़ी का पल्लू आदि नहीं होना चाहिये. किसी व्यक्ति के प्रति सम्मान प्रकट करने की यह हिन्दू परंपरा है. 

21. महिला के रजस्वला / प्रसव होने पर उसे छूत न मानें अपितु इस दौरान सफाई का पूर्ण ध्यान रखें क्योंकि ये प्राकृतिक / शारीरिक क्रियायें हैं.

22. किसी भी परस्थिति में अपशब्दों / गाली का प्रयोग नहीं करना चाहिये.

भगवान् बुद्ध के 38 महत्वपूर्ण उपदेश:

भगवान् बुद्ध के 38 महत्वपूर्ण उपदेश:💐

1. मूर्खो की संगति न करना ।
2. विद्वानों की संगती करना।
3. पूज्यनीय का सम्मान करना।
4. अनुकूल स्थान पर निवास करना।
5. पुण्य आचरण का संचय करना।
6. कुशल धर्म का संकल्प करना।
7. बहुश्रुत होना, धम्मग्रन्थों का ज्ञान होना।
8. शिल्प विद्याएं सीखना ।
9. शिष्ट होना।
10. सुशिक्षित होना।
11. सुन्दर वचन बोलना।
12. माता पिता की सेवा करना।
13. पत्नी औरबच्चों की सेवा करना
14. पाप रहित कर्मो को करना ।
15. दान देना।
16. मन, वचनऔर कर्म से पुण्य का संचय करना धर्म की सेवा करना।
17. अपने बंधुओं रिश्तेदारों का आदर सत्कार करना।
18. निर्दोष कार्यों को करना।
19. मन, वचन और शरीर से पाप कर्म न करना ।
20. शराब और किसी भी तरह का नशा न करना।
21. धम्म के कार्यो में आलस्य न करना।
22. गौरव मान-मर्यादा बढ़ाने वाले कार्य करना।
23. विनम्र होना।
24. संतुष्ट रहना।
25. कृत्यज्ञ होना।
26. उचित समय पर धम्म प्रवचन सुनना।
27. क्षमाशील होना।
28. गुरुजनो के आदेश का पालन करना।
29. संतो और अच्छे लोगों का दर्शन करना।
30. उचित समय पर धर्म प्रवचन देना लोगो को धर्म बताना।
31. तप करना और लक्ष्य प्राप्ति हेतु कष्टों को भी सहना।
32. ब्रह्मचर्य पालन करना।
33. चार आर्य सत्यों को समझना।(Four Noble Truths)
34. निर्वाण का साक्षात्कार करना, निर्वाणप्राप्ति के लिए परिश्रम करना।
35. लोक में न भटकना, अपनी चेतना शांत रखना, संसार के मोह माया में न फंसना, संसारमें विचलित न होना।
36. शोक न करना।
37. राग, द्वेष और मोह की रज से दूर रहना।
38. निर्भय 
🙏🙏🙏🙏🙏

Monday, January 18, 2016

विपश्यना साधना विधि

विपश्यना
विपश्यना साधना
साधना विधि
विपश्यना (Vipassana) आत्मनिरीक्षण द्वारा आत्मशुद्धि की अत्यंत पुरातन साधना-विधि है। जो जैसा है, उसे ठीक वैसा ही देखना-समझना विपश्यना है। लगभग २५०० वर्ष पूर्व भगवान गौतम बुद्ध ने विलुप्त हुई इस पद्धति का पुन: अनुसंधान कर इसे सार्वजनीन रोग के सार्वजनीन इलाज, जीवन जीने की कला, के रूप में सर्वसुलभ बनाया।
वेबसाइट लिंक - http://www.dhamma.org/hi/
इस सार्वजनीन साधना-विधि का उद्देश्य विकारों का संपूर्ण निर्मूलन एवं परमविमुक्ति की अवस्था को प्राप्त करना है। इस साधना का उद्देश्य केवल शारीरिक रोगों को नहीं बल्कि मानव मात्र के सभी दुखों को दूर करना है।
विपश्यना आत्म-निरीक्षण द्वारा आत्मशुद्धि की साधना है। अपने ही शरीर और चित्तधारा पर पल-पल होनेवाली परिवर्तनशील घटनाओं को तटस्थभाव से निरीक्षण करते हुए चित्तविशोधन का अभ्यास हमें सुखशांति का जीवन जीने में मदद करता है। हम अपने भीतर शांति और सामंजस्य का अनुभव कर सकते हैं।
हमारे विचार, विकार, भावनाएं, संवेदनाएं जिन वैज्ञानिक नियमों के अनुसार चलते हैं, वे स्पष्ट होते हैं। अपने प्रत्यक्ष अनुभव से हम जानते हैं कि कैसे विकार बनते हैं, कैसे बंधन बंधते हैं और कैसे इनसे छुटकारा पाया जा सकता है। हम सजग, सचेत, संयमित एवं शांतिपूर्ण बनते हैं।
परंपरा
भगवान बुद्ध के समय से निष्ठावान् आचार्यों की परंपरा ने पीढ़ी-दर-पीढ़ी इस ध्यान-विधि को अपने अक्षुण्ण रूप में बनाए रखा। इस परंपरा के वर्तमान आचार्य श्री सत्य नारायण गोयन्काजी, है। वे भारतीय मूल के है लेकिन उनका जन्म म्यंमा (बर्मा) में हुआ एवं उनके जीवन के पहले पैतालिस वर्ष म्यंमा में ही बीते। वहां उन्होंने प्रख्यात आचार्य सयाजी ऊ बा खिन, जो की एक वरिष्ठ सरकारी अफसर थे, से विपश्यना सीखी। अपने आचार्य के चरणों में चौदह वर्ष विपश्यना का अभ्यास करने बाद सयाजी ऊ बा खिन ने उन्हें १९६९ में लोगों को विपश्यना सिखलाने के लिए अधिकृत किया। उसी वर्ष वे भारत आये और उन्होंने विपश्यना के प्रचार-प्रसार का कार्य शुरू किया। तब से उन्होंने विभिन्न संप्रदाय एवं विभिन्न जाती के हजारो लोगों को भारत में और भारत के बाहर पूर्वी एवं पश्र्चिमी देशों में विपश्यना का प्रशिक्षण दिया है। विपश्यना शिविरों की बढ़ती मांग को देखकर १९८२ में श्री गोयन्काजी ने सहायक आचार्य नियुक्त करना शुरू किया।
शिविर
विपश्यना दस-दिवसीय आवासी शिविरों में सिखायी जाती है। शिविरार्थियों को अनुशासन संहिता, का पालन करना होता है एवं विधि को सीख कर इतना अभ्यास करना होता है जिससे कि वे लाभान्वित हो सके।
शिविर में गंभीरता से काम करना होता है। प्रशिक्षण के तीन सोपान होते हैं। पहला सोपान—साधक पांच शील पालन करने का व्रत लेते हैं, अर्थात् जीव-हिंसा, चोरी, झूठ बोलना, अब्रह्मचर्य तथा नशे-पते के सेवन से विरत रहना। इन शीलों का पालन करने से मन इतना शांत हो जाता है कि आगे का काम करना सरल हो जाता है।
अगला सोपान— नासिका से आते-जाते हुए अपने नैसर्गिक सांस पर ध्यान केंद्रित कर आनापान नाम की साधना का अभ्यास करना।
चौथे दिन तक मन कुछ शांत होता है, एकाग्र होता है एवं विपश्यना के अभ्यास के लायक होता है—अपनी काया के भीतर संवेदनाओं के प्रति सजग रहना, उनके सही स्वभाव को समझना एवं उनके प्रति समता रखना।
शिविरार्थी दसवे दिन मंगल-मैत्री का अभ्यास सीखते हैं एवं शिविर-काल में अर्जित पुण्य का भागीदार सभी प्राणियों को बनाया जाता है।
इस साधना में सांस एवं संवेदनाओं के प्रति सजग रहने के अभ्यास के बारे में एक विडिओ (५.७MB) नि:शुल्क क्विकटाईम मुवी प्लेयर के जरिए देखा जा सकता है।
यह साधना मन का व्यायाम है। जैसे शारीरिक व्यायाम से शरीर को स्वस्थ बनाया जाता है वैसे ही विपश्यना से मन को स्वस्थ बनाया जा सकता है।
साधना विधि का सही लाभ मिलें इसलिए आवश्यक है कि साधना का प्रसार शुद्ध रूप में हो। यह विधि व्यापारीकरण से सर्वथा दूर है एवं प्रशिक्षण देने वाले आचार्यों को इससे कोई भी आर्थिक अथवा भौतिक लाभ नहीं मिलता है।
शिविरों का संचालन स्वैच्छिक दान से होता है। रहने एवं खाने का भी शुल्क किसी से नहीं लिया जाता। शिविरों का पूरा खर्च उन साधकों के दान से चलता है जो पहिले किसी शिविर से लाभान्वित होकर दान देकर बाद में आने वाले साधकों को लाभान्वित करना चाहते हैं।
निरंतर अभ्यास से ही अच्छे परिणाम आते हैं। सारी समस्याओं का समाधान दस दिन में ही हो जायेगा ऐसी उम्मीद नहीं करनी चाहिए। दस दिन में साधना की रूपरेखा समझ में आती है जिससे की विपश्यना जीवन में उतारने का काम शुरू हो सके। जितना जितना अभ्यास बढ़ेगा, उतना उतना दुखों से छुटकारा मिलता चला जाएगा और उतना उतना साधक परममुक्ति के अंतिम लक्ष्य के करीब चलता जायेगा। दस दिन में ही ऐसे अच्छे परिणाम जरूर आयेंगे जिससे जीवन में प्रत्यक्ष लाभ मिलना शुरू हो जायेगा।
सभी गंभीरतापूर्वक अनुशासन का पालन करने वाले लोगों का विपश्यना शिविर में स्वागत है, जिससे कि वे स्वयं अनुभूति के आधार साधना को परख सके एवं उससे लाभान्वित हो। जो भी गंभीरता से विपश्यना को अजमायेगा वह जीवन में सुख-शांति पाने के लिए एक प्रभावशाली तकनिक प्राप्त कर लेगा।
आप प्रस्तावित विपश्यना शिविर में प्रवेश के लिए आवेदन कर सकते हैं।

प्रत्येक बुद्ध के अनुयायी के कर्तव्य

प्रत्येक बुद्ध के अनुयायी के कर्तव्य:

1. बौद्धों के घरों में तथागत बुद्ध, सम्राट चन्द्रगुप्त, सम्राट अशोक, बोधिसत्व  क्रान्तिवीर ज्योतिबा फुले एवं बौद्ध /  विद्वानों के अलावा अन्य किसी भी देवी-देवताओं के कलैन्डर, तस्वीरें, मूर्तियां आदि नहीं होने चाहिये.

2. किसी भी परिस्थिति में शराब, गांजा, अफीम, नस, तम्बाखू, बीडी, सिग्रेट, ड्रग्स आदि नशीले पदार्थों का सेवन वर्जित है.

3. किसी जीव की हत्या न करें और न इसके लिये किसी को प्रेरित करें.

4. मद्यपान, नशीले पदार्थ, जहर एवं हथियार का व्यापार निषिद्ध है.

5. गले, कमर या बांह में काला धागा, गंडा, ताबीज आदि अछूतपन एवं अंधविश्वासी होने का प्रतीक है अतः उक्त का इस्तेमाल नहीं करना चाहिये.

6. किसी नदी, तालाब या समुद्र को पवित्र मानकर उसमें पैसे डालना, नहाना या हाथ जोड़ना अन्धविश्वास का द्योतक है तथा नदियों आदि में पैसे डालना राष्ट्रीय मुद्रा का दुरुपयोग है, अतः ऐसे कार्य न करें. 

7. भूत-प्रेत, टोना-टोटका, झाड़-फुक, पीर-फकीर, सूर्य-ग्रहण, चन्द्र-ग्रहण, अंधेरी-उजाली या ग्रह शान्ति हेतु यज्ञ एवं हवन करना, संध्या को बत्ती जलने पर प्रणाम करना, ग्रह, नक्षत्र के हिसाब से अंगूठी में नग पहिनना, छींक आने पर भगवान का नाम लेना आदि अंधश्रद्धा के प्रतीक हैं, अतः ऐसे कार्य नहीं करने चाहिये.

8. किसी भी धार्मिक, सामाजिक विवाह आदि में नारियल, सिन्धूर, तिलक, अष्टगंध, चावल आदि का प्रयोग न करें. चावल एक खाद्य पदार्थ है अतः इसका दुरुपयोग न करें.

9. विवाह के समय वर-वधू के पैर छूना दासता का प्रतीक है अतः ऐसा न करें. 

10. भिक्खू शील व मैत्री देते हैं अतः वैवाहिक कार्य बौद्ध भिक्खु से न करवायें वर्ना पण्डा, पादरी, पुजारी, पुरोहित, और भिक्खु में कोई फर्क नहीं रह जायेगा. 

11. बौद्ध त्योहारों के दिन अपने व्यक्तिगत आयोजन यथा गृह-प्रवेश आदि न करायें. इन्हें अन्य तिथियों में करायें वरना हमारे धार्मिक त्योहारों का महत्व कम हो जायेगा.

12. विधुर एवं विधवा विवाह को प्रोत्साहित करें. 

13. विवाह रात्रि में न करें. विवाह में नाच-गाना, मांसाहार, मदिरापान वर्जित है. दहेज लेना और देना अनुचित है. विवाह के अवसर पर सिर्फ वर-वधू को ही त्रिशरण एवं पंचशील लेना चाहिये, विवाह में उपस्थित सभी को नहीं. चावल का प्रयोग टीका बनाने या फेंकने हेतु न करें. 

14. विवाह मंडप में नाच-गान आदि नहीं करना चाहिये. 
15. दान राशि 11, 21, 51, 101, 151, 201, 501 आदि आंकड़ों में न दें. बौद्ध परम्परा में इसका कोई स्थान नहीं है. 

16. शवयात्रा में खाड पूजना अर्थात अर्थी के चारों कोनों में धान, कौड़ी, पैसा आदि रखना, शव को गुलाल हल्दी आदि लगाना, लाही, पैसा आदि फेंकना अंध श्रद्धा है. 

17. मृतक के मस्तक पर सिक्का रखना, सदगति हेतु मुह में गंगाजल डालना, परित्राण का पानी, सोने का पानी, तुलसी जल आदि डालना अंध श्रद्धा है. 

18. सामूहिक भोज खुशियों को प्रदर्शित करता है. किसी भी व्यक्ति की मृत्यु पर दुःख होता है. अतः तेरहवीं (मृतक भोज) बन्द करना अनिवार्य है. 

19. किसी भी धार्मिक स्थल के सामने गाड़ी का हार्न बजाना अन्ध श्रद्धा है. 

20. वंदना के समय सिर पर टोपी, पगड़ी, मुकुट या साड़ी का पल्लू आदि नहीं होना चाहिये. किसी व्यक्ति के प्रति सम्मान प्रकट करने की यह हिन्दू परंपरा है. 

21. महिला के रजस्वला / प्रसव होने पर उसे छूत न मानें अपितु इस दौरान सफाई का पूर्ण ध्यान रखें क्योंकि ये प्राकृतिक / शारीरिक क्रियायें हैं.

22. किसी भी परस्थिति में अपशब्दों / गाली का प्रयोग नहीं करना चाहिये.

बुद्ध की मूर्ति को लेकर डा . अम्बेड़कर और भन्ते आनंद कौशल्यायन जी के बीच हुए वार्तालाप का एक महत्वपूर्ण वाकिया

बुद्ध की मूर्ति को लेकर डा . अम्बेड़कर और भन्ते आनंद
कौशल्यायन जी के बीच हुए वार्तालाप का एक महत्वपूर्ण वाकिया --
भन्ते आनंद कौसल्यायन जीने
अपनी किताब में दिया है । वह वाकिया ऐसा है कि,
एक बार भन्ते आनंद कौशल्यायन जी बाबासाहब
डा . अम्बेड़कर को दादर ( मुंबई ) में एक कार्यक्रम में लेकर
गये । 
…………… दोनों के बीच धर्म के विषय पर चर्चा चल रही
थी कि तभी बाबासाहब ने भन्ते आनंद कौशल्यायन
जी से एक सवाल किया कि, 'भन्ते ! आपको बुद्ध की
कौन-सी मूर्ति पसंद है ?'
………… तब भन्ते आनंद कौशल्यायन जी ने बड़े ही श्रद्धाभाव
से जवाब दिया कि
^^ 'ध्यान साधना में लीन बुद्ध की मूर्ति मुझे अधिक पसंद है ।' ^^^
………… तब डा . अम्बेड़कर जी ने भन्ते जी से अपने दिल की बात बताते हुए कहा कि,
'भन्ते ! मुझे
ध्यान साधना में लीन बुद्ध की मूर्ति बिल्कुल पसंद
नहीं है ।
_____  मैं उस बुद्ध की मूर्ति को अधिक पसंद करता
हूँ जो हाथ में भिक्षापात्र लेकर चारिका कर रहे हैं'
और इसके पीछे के कारण को स्पष्ट करते हुए
डा.अम्बेडकर ने भन्ते जी को तथागत बुद्ध का वह
महत्वपूर्ण संदेश याद दिलाया जिसमें 
बुद्ध अपने पहले
प्रवचन में पंचवग्गीय भिक्खुओं से कहते हैं कि -- ^^^^^-- 'चरथं भिक्खव्वे चारिकं, बहुजन हिताय-बहुजन सुखाय ।
लोकानु कंपाय, अत्तानु हिताय, आदि कल्याण,
मध्य कल्याण, अंत कल्याण' ^^^^ 
 अर्थात, जो बहुजनों के
कल्याण के लिए, बहुजनों के सुख के लिए तथा
बहुजनों का प्रारंभ कल्याणकारी हो, मध्ये
कल्याणकारी हो और अंत भी कल्याणकारी हो
इसके लिए प्रतिदिन चारिका करता है, प्रतिदिन
मार्गदर्शन करता है, ऐसा प्रतिदिन भ्रमण करनेवाला
प्रचारक बुद्ध मुझे अधिक पसंद है ।
इस उदाहरण से हमें यह ध्यान में आएगा कि
बाबासाहब डा. अम्बेडकर कोई भी बात श्रद्धावान
उपासक बनकर स्वीकार नहीं करते थे, बल्कि उसकी
छानबीन कर योजनाबद्ध तरिके से अपनाते थे । जो
विचार स्वीकार करने योग्य है, 
जो विचार कालसंगत है वह विचार बाबासाहब ने स्वीकार किया । साथ ही जो कालबाह्य विचार उसे कदापि स्वीकार नहीं किया । हमेशा उस विचार पर असहमति जताई । बाबासाहब डा.अम्बेडकर जी ने ऐसा इसलिए किया,  क्योंकि तथागत गौतम बुध्द को भी यही सिध्दान्त मान्य था ।
------ मा. वामन मेश्राम  (  राष्ट्रीय अध्यक्ष, बामसेफ तथा भारत मुक्ती मोर्चा )

बाबासाहेब और भारतीय

Most Imp.  

जरूर पढ़े : बाबासाहेबजी और भारतीय 

🔹🔹🔹🔹🔹🔹🔹🔹
प्रशन: भारतीय संविधान कौनसे धर्म पर आधारित है ❓❓❓❓❓

उत्तर निम्न प्रकार है ----
 मैं भारत बौद्धमय करूंगा - बाबासाहेब डॉ अम्बेडकर  

14 अगस्त रात्रि 12.02 बजे सन 1947 को भारत देश का सत्ता-हस्तांतरण  हुआ। 

26 नवम्बर 1949 को संविधान को अंगिकार किया गया ।

26 जनवरी 1950 को भारत का संविधान लागू किया गया था।  

भारतीय संविधान के कारण महात्मा  बुद्ध तथा सम्राट अशोक के देश का, एक नये रूप में संविधान के निर्माता बाबासाहेब डॉ अम्बेडकर जी ने दुनिया के सामने पेश किया। 

बाबासाहेब ने भारतीय संविधान के माध्यम से, दुनिया के सामने भारत देश को पुन: स्थापित किया। 

भारत को "बुद्ध का देश" के नाम से जाना जाता रहा है। 

०१ बुद्ध धर्म का प्रतीक - आकाशीय नीला रंग. है

०२ बुद्ध-धर्म का प्रतीक -"कमल का फूल"  राष्ट्रीय फूल है।

०३ बोधि वृक्ष - "पिपल के वृक्ष" को राष्ट्रीय वृक्ष की मान्यता दी गई है।

०४ बुद्ध-धर्म धर्म  के "धर्म-चक्र" को राष्ट्रीय चिन्ह की मान्यता दी गई और राष्ट्रीय झंडे में  धर्म चक्र अंकित किया गया है।

०५ सम्राट अशोक की राजधानी चार सिंह वाली मुद्रा के प्रतीक को भारत देश की राजमुद्रा घोषित की गई है।

०६ बुद्ध-धर्म के मार्ग  समता, स्वातंत्र्य, न्याय व विश्व बंधुत्व  को भारतीय संविधान ने स्वीकृति दी है । 

०७ सम्राट अशोक के "सत्यमेव जयते" को भारतीय शासन व्यवस्था मे ब्रीद वाक्य कि स्वीकृति दी है ।

०८ विश्व में  भारत को पहचान बौद्ध संस्कृति के कारण मिली है।

०९ राष्ट्रीय ध्वज तिरंगा में  पहला रंग जिसे हम लाल, केशरी, भगवा, आँरेंज कहते हैं। उस कलर को भारतीय संविधान में एक विशेष नाम वर्णित किया गया है।  अंग्रेजी में उसे  आेशर कहा जाता है। आेशर - लाल, पिला मिट्टी जैसा होता है, जो बौद्ध भिक्षु के चिवर का रंग है और यह त्याग का प्रतीक है। 

१० दुसरा सफेद रंग  - सफेद रंग को बौद्ध धर्म में विशेष महत्व है। सफेद रंग शांति एवं सत्य का प्रतीक है, बौद्ध उपासक /उपासिका शील ग्रहण करते समय सफेद वस्त्र पहने जाते हैं। 

११ तीसरा हरा रंग  - जो कि निसर्ग, प्राणियों पर प्रेम करना, बुद्ध धर्म के पंचशील का आचरण करना है। 

१२ तिरंगे के बीच में बुद्ध धर्म का प्रतीक धर्मचक्र नीले रंग में अंकित किया गया है। 

१३ समस्त ब्रह्मांड में   बौद्ध-धर्म की पहचान दिलाता है कि हमारा राष्ट्रीय ध्वज तिरंगा है।
 संविधान मसोदा समिति के अध्यक्ष बाबासाहेब डॉ अम्बेडकर ने देश को समर्पित किया। 

१४ भारत के सर्वोच्च नागरिक पुरस्कार का नाम बुद्ध-धर्म  से सम्बन्धित  हैं। भारत रत्न भी बुद्ध-धर्म  की पदवी, बुद्ध, धर्मसंघ तीनों बुद्ध धर्म के त्रिरत्न हैं।
 बुद्ध धर्म में सर्वश्रेष्ठ व्यक्ति को रत्न के नाम पर पदवी दी जाती है। अनेक बौद्ध भिक्षु के नाम के साथ  रत्न शब्द का उल्लेख मिलता है । उदाहरणार्थ  भन्ते ज्योतीरत्न, भन्ते संघरत्न, भन्ते शांतीरत्न वगैरे। महान रत्न शब्द का बाबासाहेब पर बहुत गहरा प्रभाव रहा है।

बाबासाहेब ने अपने एक लाडले पुत्र का नाम भी राजरत्न रखा था, "रत्न" महान शब्द से देश के सर्वोच्च नागरिक पुरस्कार का नाम भारत रत्न रखा है। 

१५ "भारतरत्न"  चिन्ह का भी बौद्ध धर्म से गहरा सम्बन्ध है। बोधि वृक्ष के पिपल के "सोनेरी पान" जिस पर पुरस्कार स्वीकारने वाले व्यक्ति का नाम सोनेरी में अंकित किया जाता है  और दुसरे बाजु में  चार सिंह वाली राजमुद्रा व धर्मचक्र रहता है। 

१६ बुद्ध धर्म  के, मैत्री, प्रेम, व करूणा का प्रतीक कमल के फूल को संविधान कमेटी ने "राष्ट्रीय पुष्प " की मान्यता दी है। 
 थाईलैंड, श्रीलंका, मयमार बोद्ध देश में .  तथागत  बुद्ध के चरणों में कमल के फूल को अर्पित किया जाता है।

१७ पाली भाषा में कमल के फूल को पदम कहा जाता है। 
भारत रत्न पुरस्कार के बाद तीन प्रमुख पुरस्कार है जिसका नाम पदम माने कमल होता है। कमल के एक बाजु में विभूषण, भूषण अथवा श्री लिखा होता है। 

१८ युद्ध-शौर्य में तीन प्रमुख पुरस्कार हैं

परमवीर चक्र, महावीर-चक्र व वीरचक्र  पुरस्कारों में  कमल का फूल विराजमान  है ।

१९ प्रमुख पुरस्कार का नाम "अशोक चक्र" है। 

२० राष्ट्रपति भवन के प्रमुख हाल का नाम  * अशोक हाल  * है। 

२१ हमारे केन्द्रीय मंत्री मंडल के निवास स्थान के परिसर का नाम बुद्ध सस्कृति पर रखा गया है, सम्राट अशोक के मंत्रीमंडल के नगर का नाम भी * जनपथ *  था । इसलिए जनपथ नाम रखा है। 

२२ भारत की पहचान करने वाली प्रत्येक प्रतीक  का बुद्ध धर्म से सम्बन्ध है। घटना समिति के सदस्यों में से प्रत्येक सदस्यों ने स्वीकृति दी है।

क्योंकि वह सत्य है और सत्य कभी भी अमान्य नहीं हो सकता , इस प्रकार बाबासाहेब ने भारत देश  बौद्धमय किया है। 
 बुद्ध धर्म की  विजय। 
 सम्राट अशोक महान की विजय। 
 बोधिसत्व, भारत रत्न बाबासाहेब की  विजय। 
 भारतीय संविधान की विजय है।

आज जरूरत है बाबासाहब के कारवां को आगे बढ़ाने की और इतिहास के सही जानकारी की जिससे हमारे समाज के लोग आजतक  अनभिज्ञ है । बाबासाहब ने सारी सामाजिक, धार्मिक, आर्थिक, शैक्षणिक व कानूनी  व्यवस्था संविधान के माध्यम से हमारे लिए कर रखी है । जरूरत है बस उसे अमलीजामा पहनाने की ।

हमारे समाज के लोगो ने बाबासाहब के उस कोटेशन को कभी भी गम्भीरता से  नहीं लिया है 
राष्ट्रपति भवन पर  आदिवासी गोंड , सारणा, भील आदि   के धर्म का प्रतीक चिन्ह "टोटम " का प्रतीक राजचिन्ह भी स्थापित है

विडम्बना है कि समस्त प्रतीक चिन्ह, रंग, भाषा, आदि अद्वेतवाद धर्म के शंकराचार्य व मनुवादियों ने अपना कहकर प्रचारित व प्रसारित  कर रखा है। इसके अतिरिक्त मूलनिवासियों के देवी देवताओं व ग्रंथों के मूल कहानियों को प्रवर्तित कर मनुवादियों ने ब्राह्मणीकरण कर  दिया है।
देश के मूलनिवासियों को समझना व जानना होगा कि मनुवादियों ने हमारे प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष रुप से देश,सामाजिक, धार्मिक, शैक्षणिक  खानपान, व मानसिकता पर कब्जा कर रखा है और विदेशी यूरोपियन अंग्रेज , वर्णशंकृत  दूसरे विदेशी  मनुवादी यूरेशियन को शासन व, प्रशासन सौंप गये हैं । क्योंकि हमारा समाज सदियों  से लेकर आज तक मुंगेरी लाल के हसीन सपनों की दुनिया  में खोया हुआ है ।
हे मानव:- बच्चों को शिक्षित बनाएं, संगठित रहें  व मिलकर  संघर्ष कर, शासन प्रशासन, व्यवसाय, सेनाधिकारी, हाईकोर्टों, मीडिया   में सहभागीदार बनें l 
जय-भीम जय-भारत 

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गौतम बुद्ध के सुविचार

🌺गौतम बुद्ध के सुविचार🌺

☝जो गुजर गया उसके बारे में मत सोचो और भविष्य के सपने मत देखो
केवल वर्तमान पे ध्यान केंद्रित करो ।
–🙏गौतम बुद्ध

☝आप पूरे ब्रह्माण्ड में कहीं भी ऐसे व्यक्ति को खोज लें जो आपको आपसे ज्यादा प्यार करता हो, आप पाएंगे कि जितना प्यार आप खुद से कर सकते हैं उतना कोई आपसे नहीं कर सकता।
–🙏 गौतम बुद्ध

☝स्वास्थ्य सबसे बड़ा उपहार है, संतोष सबसे बड़ा धन और विश्वास सबसे अच्छा संबंध।
–🙏 गौतम बुद्ध

☝हमें हमारे अलावा कोई और नहीं बचा सकता, हमें अपने रास्ते पे खुद चलना है।
– 🙏गौतम बुद्ध

☝तीन चीज़ें ज्यादा देर तक नहीं छुपी रह सकतीं – सूर्य, चन्द्रमा और सत्य
 –🙏 गौतम बुद्ध

☝आपका मन ही सब कुछ है, आप जैसा सोचेंगे वैसा बन जायेंगे ।
– 🙏गौतम बुद्ध

☝अपने शरीर को स्वस्थ रखना भी एक कर्तव्य है, अन्यथा आप अपनी मन और सोच को अच्छा और साफ़ नहीं रख पाएंगे ।
– 🙏गौतम बुद्ध

☝हम अपनी सोच से ही निर्मित होते हैं, जैसा सोचते हैं वैसे ही बन जाते हैं। जब मन शुद्ध होता है तो खुशियाँ परछाई की तरह आपके साथ चलती हैं ।
–🙏गौतम बुद्ध

☝किसी परिवार को खुश, सुखी और स्वस्थ रखने के लिए सबसे जरुरी है - अनुशासन और मन पर नियंत्रण।
अगर कोई व्यक्ति अपने मन पर नियंत्रण कर ले तो उसे आत्मज्ञान का रास्ता मिल जाता है
– 🙏गौतम बुद्ध

☝क्रोध करना एक गर्म कोयले को दूसरे पे फैंकने के समान है जो पहले आपका ही हाथ जलाएगा।
–🙏गौतम बुद्ध

☝जिस तरह एक मोमबत्ती की लौ से हजारों मोमबत्तियों को जलाया जा सकता है फिर भी उसकी रौशनी कम नहीं होती उसी तरह एक दूसरे से खुशियाँ बांटने से कभी खुशियाँ कम नहीं होतीं ।
–🙏गौतम बुद्ध

☝ इंसान के अंदर ही शांति का वास होता है, उसे बाहर ना तलाशें ।
–🙏 गौतम बुद्ध

☝ आपको क्रोधित होने के लिए दंड नहीं दिया जायेगा, बल्कि आपका क्रोध खुद आपको दंड देगा ।
–🙏गौतम बुद्ध

☝ हजारों लड़ाइयाँ जितने से बेहतर है कि आप खुद को जीत लें, फिर वो जीत आपकी होगी जिसे कोई आपसे नहीं छीन सकता ना कोई स्वर्गदूत और ना कोई राक्षस ।
–🙏 गौतम बुद्ध

☝ जिस तरह एक मोमबत्ती बिना आग के खुद नहीं जल सकती उसी तरह एक इंसान बिना आध्यात्मिक जीवन के जीवित नहीं रह सकता ।
–🙏 गौतम बुद्ध

☝ निष्क्रिय होना मृत्यु का एक छोटा रास्ता है, मेहनती होना अच्छे जीवन का रास्ता है, मूर्ख लोग निष्क्रिय होते हैं और बुद्धिमान लोग मेहनती ।
–🙏गौतम बुद्ध

☝हम जो बोलते हैं अपने शब्दों को देखभाल के चुनना चाहिए कि सुनने वाले पे उसका क्या प्रभाव पड़ेगा,
अच्छा या बुरा ।
–🙏 गौतम बुद्ध

☝ आपको जो कुछ मिला है उस पर घमंड ना करो और ना ही दूसरों से ईर्ष्या करो, घमंड और ईर्ष्या करनेवाले लोगों को कभी मन की शांति नहीं मिलती ।
–🙏 गौतम बुद्ध

☝ अपनी स्वयं की क्षमता से काम करो, दूसरों निर्भर मत रहो ।
–🙏 गौतम बुद्ध

☝ असल जीवन की सबसे बड़ी विफलता है हमारा असत्यवादी होना ।
– 🙏​ गौतम बुद्ध

Saturday, January 16, 2016

गौतम बुद्ध के विचार

गौतम बुद्ध के विचार-

चार सत्य
1. दुनिया में दुःख है।
2. दुखों की कोई-न-कोई वजह है। 
3. दुखों का निवारण मुमकिन है।
4. दुःख निवारण का मार्ग है ।

- दुखों की मूल वजह अज्ञान है। अज्ञान के कारण ही इंसान मोह-माया और तृष्णा में फंसा रहता है। 

- अज्ञान से छुटकारा पाने के लिए अष्टांग मार्ग का पालन है : 1. सही समझ, 2. सही विचार, 3. सही वाणी, 4. सही कार्य, 5. सही आजीविका, 6. सही प्रयास, 7. सही सजगता और 8. सही एकाग्रता। 

- साधना के जरिए सर्वोच्च सिद्ध अवस्था को पाया जा सकता है। यही अवस्था बुद्ध कहलाती है और इसे कोई भी पा सकता है। 

- इस ब्रह्मांड को चलानेवाला कोई नहीं है और न ही कोई बनानेवाला है। 

- न तो ईश्वर है और न ही आत्मा। जिसे लोग आत्मा समझते हैं, वह चेतना का प्रवाह है। यह प्रवाह कभी भी रुक सकता है। 

- भगवान और भाग्यवाद कोरी कल्पना है, जो हमें जिंदगी की सचाई और असलियत से अलग कर दूसरे पर निर्भर बनाती है। 

- पांचों इंद्रियों की मदद से जो ज्ञान मिलता है, उसे आत्मा मान लिया जाता है। असल में बुद्धि ही जानती है कि क्या है और क्या नहीं। बुद्धि का होना ही सत्य है। बुद्धि से ही यह समस्त संसार प्रकाशवान है। 

- न यज्ञ से कुछ होता है और न ही धार्मिक किताबों को पढ़ने मात्र से। धर्म की किताबों को गलती से परे मानना नासमझी है। पूजा-पाठ से पाप नहीं धुलते। 

- जैसा मैं हूं, वैसे ही दूसरा प्राणी है। जैसे दूसरा प्राणी है, वैसा ही मैं हूं इसलिए न किसी को मारो, न मारने की इजाजत दो। 

- किसी बात को इसलिए मत मानो कि दूसरों ने ऐसा कहा है या यह रीति-रिवाज है या बुजुर्ग ऐसा कहते हैं या ऐसा किसी धर्म प्रचारक का उपदेश है। मानो उसी बात को, जो कसौटी पर खरी उतरे। कोई परंपरा या रीति-रिवाज अगर मानव कल्याण के खिलाफ है तो उसे मत मानो।

 - खुद को जाने बगैर आत्मवान नहीं हुआ जा सकता। निर्वाण की हालत में ही खुद को जाना जा सकता है। 

- इस ब्रह्मांड में सब कुछ क्षणिक और नश्वर है। कुछ भी स्थायी नहीं। सब कुछ लगातार बदलता रहता है। 

- एक धूर्त और खराब दोस्त जंगली जानवर से भी बदतर है, क्योंकि जानवर आपके शरीर को जख्मी करेगा, जबकि खराब दोस्त दिमाग को जख्मी करेगा। 

- आप चाहे कितने ही पवित्र और अच्छे शब्द पढ़ लें या बोल लें, लेकिन अगर उन पर अमल न करें, तो कोई फायदा नहीं। 

- सेहत सबसे बड़ा तोहफा है, संतुष्टि
🔹🔹🔹🔹🔹🔹🔹🔹🔹🔹🔹🔹

बुद्ध के धम्म का केन्द्र बिन्दु आदमी है

बुद्ध के धम्म का केन्द्र बिन्दु आदमी है. इस पृथ्वी पर रहते हुये आदमी का आदमी के प्रति क्या कर्तव्य होना चाहिये? यह उनकी पहली स्थापना है.
दूसरी स्थापना है कि आदमी दुखी है, कष्ट में है, दरिद्रता का जीवन जी रहा है. संसार दुःख से भरा पड़ा है. धम्म का उद्देश्य इस दुःख का नाश करना ही है.
दुःख के अस्तित्व की स्वीकृति और दुःख के नाश करने के उपाय धर्म की आधारशिला हैं.

धम्म कैसे दु:ख का नाश करता है?

यदि व्यक्ति
- (1) पवित्रता के पथ पर चले
- (2) धम्म के पथ पर चले
- (3) शील-मार्ग पर चले
तो इस दुःख का निरोध हो सकता है.
कोई भी आदमी जो अच्छा बनना चाहता है, उसके लिये यह आवश्यक है कि अच्छाई का कोई मापदण्ड स्वीकार करे.

बुद्ध की पवित्रता के पथ के अनुसार अच्छे जीवन के 5 मापदण्ड हैं.
-(1) किसी प्राणी की हिंसा न करना.
-(2) चोरी न करना.
-(3) व्यभिचार न करना.
-(4) असत्य न बोलना.
-(5) नशीली जीजें ग्रहण न करना.

हर व्यक्ति के लिये ये परम आवश्यक है कि वह इन पाँच शीलों को स्वीकार करे, क्योंकि हर आदमी के लिये जीवन का कोई मापदण्ड होना चाहिये, जिससे वह अपनी अच्छाई-बुराई को माप सके. धम्म के अनुसार ये पाँच शील जीवन की अच्छाई-बुराई मापने के मापदण्ड हैं.

दुनियां में हर जगह पतित (बुरे, गिरे हुये) लोग भी होते हैं. पतित दो तरह के होते हैं-
 एक, वे जिनके जीवन का कोई मापदण्ड होता है.
दूसरे, वे जिनके जीवन का कोई मापदण्ड ही नहीं होता.

जिसके जीवन का कोई मापदण्ड नहीं होता, वह पतित होने पर भी यह नहीं जानता कि वह पतित है. इसलिये वह हमेशा पतित ही रहता है.

दूसरी ओर जिसके जीवन का कोई मापदण्ड होता है, वह हमेशा इस बात की कोशिश करता रहता है कि पतित अवस्था से ऊपर उठे. क्यों? क्योंकि वह जानता है कि वह पतित है, गिर गया है.
अत: बुद्ध के ये पाँच शील व्यक्ति के लिये कल्याणकारी हैं और व्यक्ति से ज्यादा समाज के लिये कल्याणकारी हैं.

 अाष्टांगिक मार्ग 

 आष्टांगिक मार्ग सर्वश्रेष्ठ इसलिए है कि यह हर दृष्टि से जीवन को शांतिपूर्ण और आनंदमय बनाता है. बुद्ध ने इस दुःख निरोध प्रतिपद आष्टांगिक मार्ग को 'मध्यमा प्रतिपद' या मध्यम मार्ग की संज्ञा दी है. अर्थात जीवन में संतुलन ही मध्यम मार्ग पर चलना है.

 अष्टांग मार्ग या अाष्टांगिक मार्ग तथागत बुद्ध द्वारा प्रतिपादित आठ उपदेश हैं, जो मानव-विकास एवं सामाजिक विकास में सहायक हैं. तथागत बुद्ध के अनुसा राग-द्वेष से मुक्त होकर आष्टांगिक मार्ग पर चलते हुये श्रेष्ठ जीवन जीना ही निर्वाण कहलाता है.
ये आठ मार्ग निम्नवत हैं:

 सम्यक दृष्टि : सम्मा दिट्ठी (पाली) अाष्टांगिक मार्ग का प्रथम और प्रधान अंग है. अविद्या का विनाश सम्यक दृष्टि का अंतिम उद्देश्य है. सम्यक दृष्टि मिथ्या दृष्टि की विरोधनी है. अविद्या का अर्थ है, आर्य सत्यों (Noble Truths) को न समझ पाना.

सम्यक दृष्टि का अर्थ है, कर्म-कांड की प्रभाव उत्पादकता में विश्वास न रखना और शास्त्रों की पवित्रता की मिथ्या-धारणा से मुक्त होना.

सम्यक दृष्टि का अर्थ है, अंधविश्वास तथा अलौकिकता का त्याग करना.
सम्यक दृष्टि का अर्थ है, ऐसी सभी मिथ्या धारणाओं का त्याग करना जो कल्पनामात्र हैं और जो यथार्थ पर आधारित नहीं हैं.

सम्यक दृष्टि का न होना, सभी बुराइयों की जड़ है. सम्यक दृष्टि अन्धविश्वास तथा भ्रम से रहित यथार्थ को समझने की दृष्टि है. जीवन के दुःख और सुख का सही अवलोकन, तथागत बुद्ध द्वारा प्रतिपादित महान सत्यों को समझाने का कार्य सम्यक दृष्टि ही करती है.

 सम्यक संकल्प : हर आदमी के उद्देश्य, आकांक्षायें तथा महत्वाकांक्षायें होती हैं. सम्यक संकल्प यह शिक्षा देता है कि हमारे उद्देश्य, आकांक्षायें तथा महत्वाकांक्षायें उच्च स्तर की हों, जनकल्याणकारी हों. जीवन में संकल्पों का बहुत महत्व है. दुःख से छुटकारा पाने के लिये दृढ़ निश्चय करना सम्यक संकल्प है. दुःख के निरोध के मार्ग पर चलने के लिये उच्च तथा बुद्धियुक्त संकल्प ही सम्यक संकल्प है.

 सम्यक वाणी : सम्यक वाणी हमें सत्य बोलने, असत्य न बोलने, पर-निंदा से दूर रहने, गाली-गलौच वाली भाषा न बोलने, सभी से विनम्र वाणी बोलने की शिक्षा देती है. जीवन में वाणी की सत्यता और विनम्रता आवश्यक है. यदि वाणी में सत्यता और विनम्रता नहीं तो दुःख निर्मित होने में ज्यादा समय नहीं लगता. सम्यक वाणी का व्यवहार किसी भय या पक्षपात के कारण नहीं होना चाहिये.

 सम्यक कर्मान्त (सम्मा कम्मन्तो) : दुराचार रहित शान्तिपूर्ण, निष्ठापूर्ण कर्म ही सम्यक कर्मान्त कहा जाता है. सम्यक कर्मान्त का अर्थ है दूसरों की भावनाओं और अधिकारों का आदर करना.

 सम्यक आजीव या सम्यक आजीविका :  किसी भी प्राणी को आघात या हानि पहुँचाये बिना न्यायपूर्ण जीविकोपार्जन सम्यक आजीव कहलाता है.

 सम्यक व्यायाम : आत्म-प्रशिक्षण, मंगल की उत्पत्ति और अमंगल के निरोध हेतु किया गया प्रयत्न या अभ्यास सम्यक व्यायाम कहलाता है.
सम्यक व्यायाम के चार उद्देश्य हैं :
– अाष्टांगिक मार्ग विरोधी चित्त-प्रवृत्तियों को रोकना.
– येसी चित्त-प्रवृत्तियों को दबा देना जो पहले से उत्पन्न हो गयी हों.
– येसी चित्त-प्रवृत्तियों को उत्पन्न करना जो अाष्टांगिक मार्ग की आवश्यकताओं की पूर्ति में सहायक हों.
– येसी चित्त-प्रवृत्तियों का विकास करना जो अाष्टांगिक मार्ग पर चलाने में सहायक हों.

 सम्यक स्मृति : सम्यक स्मृति जागरूकता और विचारशीलता का आह्वान करती है. बुरी भावनाओं के विरूद्ध चित्त द्वारा नजर रखना सम्यक स्मृति  का काम है. सम्यक स्मृति से चित्त में एकाग्रता का भाव आता है, जिससे शारीरिक तथा मानसिक अनावश्यक भोग-विलास की वस्तुओं को स्वयं से दूर रखने में मदद मिलती है. एकाग्रता से विचार और भावनाएँ स्थिर होकर शुद्ध बनी रहती हैं.

 सम्यक समाधि : सम्यक दृष्टि, सम्यक संकल्प, सम्यक वाणी, सम्यक कर्मान्त, सम्यक आजीव, सम्यक आजीव, सम्यक स्मृति और सम्यक समाधि प्राप्त करने की चेष्टा करने वाले व्यक्ति के मार्ग में 5 बंधन या बाधायें आती हैं. ये 5 बाधायें हैं – लोभ, द्वेष, आलस्य, विचिकित्सा और अनिश्चय. इसलिये इन बाधायों पर विजय प्राप्त करना आवश्यक है. इन पर विजय प्राप्त करने का मार्ग समाधि है. लेकिन, यहाँ ये समझ लो कि समाधि, सम्यक समाधि से अलग है, भिन्न है. समाधि का मतलब है चित्त की एकाग्रता. यह एक तरह का ध्यान है जिसमें ऊपर लिखी पाँचों बाधायें अस्थाई तौर पर स्थगित रहती हैं. खाली समाधि एक नकारात्मक स्थिति है. समाधि से मन में स्थाई परिवर्तन नहीं आता. आवश्यकता है चित्त में स्थायी परिवर्तन लाने की. स्थायी परिवर्तन सम्यक समाधि के द्वारा ही लाया जा सकता है. सम्यक समाधि एक भावात्मक वस्तु है. यह मन को कुशल कर्मों का एकाग्रता के साथ चिन्तन करने का अभ्यास डालती है और कुशल ही कुशल सोचने की आदत डाल देती है. सम्यक समाधि मन को अपेक्षित शक्ति देती है, जिससे आदमी कल्याणरत रह सके.

Friday, January 15, 2016

बौद्ध संगीतिया

बौद्ध संगीतिया

प्रथम बौद्ध संगीति' का आयोजन (483BC)

'प्रथम बौद्ध संगीति' का आयोजन 483 ई.पू. में राजगृह (आधुनिक राजगिरि), बिहार की 'सप्तपर्णि गुफ़ा' में किया गया था। तथागत गौतम बुद्ध के महापरिनिर्वाण के तुरंत बाद ही इस संगीति का आयोजन हुआ था। इसमें बौद्ध स्थविरों (थेरों) ने भाग लिया और तथागत बुद्ध के प्रमुख शिष्य महाकाश्यप ने उसकी अध्यक्षता की। चूँकि तथागत बुद्ध ने अपनी शिक्षाओं को लिपिबद्ध नहीं किया था, इसीलिए प्रथम संगीति में उनके तीन शिष्यों-'महापण्डित महाकाश्यप', सबसे वयोवृद्ध 'उपालि' तथा सबसे प्रिय शिष्य 'आनन्द' ने उनकी शिक्षाओं का संगायन किया।

▶द्वितीय बौद्ध संगीति (383 BC)

एक शताब्दी बाद बुद्धोपदिष्ट कुछ विनय-नियमों के सम्बन्ध में भिक्षुओं में विवाद उत्पन्न हो जाने पर वैशाली में दूसरी संगीति हुई। इस संगीति में विनय-नियमों को कठोर बनाया गया और जो बुद्धोपदिष्ट शिक्षाएँ अलिखित रूप में प्रचलित थीं, उनमें संशोधन किया गया।

▶तृतीय बौद्ध संगीति (249 BC)

बौद्ध अनुश्रुतियों के अनुसार बुद्ध के परिनिर्वाण के 236 वर्ष बाद सम्राट अशोक के संरक्षण में तृतीय संगीति 249 ईसा पूर्व में पाटलीपुत्र में हुई थी। इसकी अध्यक्षता प्रसिद्ध बौद्ध ग्रन्थ 'कथावत्थु' के रचयिता तिस्स मोग्गलीपुत्र ने की थी। विश्वास किया जाता है कि इस संगीति में त्रिपिटक को अन्तिम रूप प्रदान किया गया। यदि इसे सही मान लिया जाए कि अशोक ने अपना सारनाथ वाला स्तम्भ लेख इस संगीति के बाद उत्कीर्ण कराया था, तब यह मानना उचित होगा, कि इस संगीति के निर्णयों को इतने अधिक बौद्ध भिक्षु-भिक्षुणियों ने स्वीकार नहीं किया कि अशोक को धमकी देनी पड़ी कि संघ में फूट डालने वालों को कड़ा दण्ड दिया जायेगा।

चतुर्थ बौद्ध संगीति में थोड़ा मतभेद है क्यों की इस समय तक बौद्ध सम्प्रदय में दरार पड़ चुकी थी और बौद्ध हीनयान और महायान सम्प्रदाय में बट चुके थे।

▶चतुर्थ बौद्ध संगीति (थेरावदा )

1 शताब्दी ईसा पूर्व में श्रीलंका में आयोजित किया गया था जिस में पहली बार त्रिपिटक को ताड़ के पत्तों पर लिखा गया था। इस का कारण यह था की उस साल श्रीलंका में आकाल पड़ा था और बहुत से बौद्ध भिक्षु भूख के कारण मर रहे थे और उन्हें त्रिपिटक के उपदेशो का अपने साथ खत्म हो जाने का खतरा महसुस हुआ और उन्होंने त्रिपिटक को लिख कर संरक्षित करने का फैसला लिया गया क्यों की इस से पहले त्रिपिटक को मुह -जुबानी याद रखा जाता था औरइस संगीति में त्रिपिटक को ताड़ के पत्तों पर पहली बार लिखा गया । चतुर्थ बौद्ध संगीति (थेरावदा ) का आयोजन तम्बपन्नी ( श्रीलंका ) में राजा वत्तागमनी ( 103-77 ईसा पूर्व) के संरक्षण में किया गया। यह थेरावदा बौद्ध सम्प्रदाय की बौद्ध संगीति थी।

▶चतुर्थ बौद्ध संगीति (महायान)

चतुर्थ और अंतिम बौद्ध संगीति कुषाण सम्राट कनिष्क के शासनकाल (लगभग 120-144 ई.) में हुई। यह संगीति कश्मीर के 'कुण्डल वन' में आयोजित की गई थी। इस संगीति के अध्यक्ष वसुमित्र एवं उपाध्यक्ष अश्वघोष थे। अश्वघोष कनिष्क का राजकवि था। इसी संगीति में बौद्ध धर्म दो शाखाओं हीनयान और महायान में विभाजित हो गया।

हुएनसांग के मतानुसार सम्राट कनिष्क की संरक्षता तथा आदेशानुसार इस संगीति में 500 बौद्ध विद्वानों ने भाग लिया और त्रिपिटक का पुन: संकलन व संस्करण हुआ। इसके समय से बौद्ध ग्रंथों के लिए पाली भाषा का प्रयोग हुआ और महायान बौद्ध संप्रदाय का भी प्रादुर्भाव हुआ। इस संगीति में नागार्जुन भी शामिल हुए थे। इसी संगीति में तीनों पिटकों पर टीकायें लिखी गईं, जिनको 'महाविभाषा' नाम की पुस्तक में संकलित किया गया। इस पुस्तक को बौद्ध धर्म का 'विश्वकोष' भी कहा जाता है।

▶पांचवी बौद्ध संगीति

पांचवा बौद्ध परिषद राजा मिन्दन के संरक्षण में वर्ष 1871 में बर्मा के मांडले, में आयोजित की गई थी। इस परिषद् की अध्यक्षता जगरभिवामसा, नारिन्धाभीधजा और सुमंगल्समी ने की थी। इस परिषद के दौरान, 729 पत्थरों के ऊपर बौद्ध शिक्षाओं को उकेरा गया था।छठी बौद्ध परिषदछठी बौद्ध परिषद बर्मा के काबा ऐ यांगून में 1954 में आयोजित की गई थी। इस परिषद् को बर्मा सरकार का संरक्षण मिला था। इस परिषद् की अध्यक्षता बर्मा के प्रधानमंत्री यू नू ने की थी। इस परिषद का आयोजन बौद्ध धर्म के 2500 वर्ष पूरे होने की स्मृति में किया गया था।

▶ छठवीं बौद्ध संगीति

आधुनिक काल में छठी उल्लेखनीय बौद्ध परिषद का आयोजन गौतम बुद्ध की 2500वीं पुण्य तिथि के अवसर पर मई, 1954 से मई, 1958 के बीच यांगून (रंगून) में किया गया था। इस बैठक में म्यांमार (बर्मा), भारत, श्रीलंका, नेपाल, कंबोडिया, थाइलैंड, लाओस और पाकिस्तान के भिक्षु-समूह द्वारा समस्त पालि थेरवाद विधि ग्रंथों की समीक्षा तथा पाठ किया गया।
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भारत के हर नागरिक के लिये बौद्ध धर्म

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सेवा में
      श्री मान आदरणीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी    मेरे देशवासियों आप लोगो को सूचित करता हूँ 
आप मेरी छोटी - छोटी शब्दो में परिभाषा समझे 
डॉ भीम राव अम्बेडकर जी  देश को जो दे गये आरक्षण एवं बौद्ध धर्म बहूत जादा हें छोटे शब्दो में कहता हूँ- - 

sc.st.obc. को समानता के लिये आरक्षण 
भारत के हर नागरिक के लिये बौद्ध धर्म  उच्च विचार मंथन करने के लिये हें तंत्र मंत्र के लिये नही 
इनके अलवा आज तक मंदिर मेरा हें मज्जित तेरी हें तू नीच हें में ऊंच हूँ 🙏🙏🙏🙏
 
1👊डॉ भीम राव अम्बेडकर पार्क - - -
श्री सुश्री बहन कु.मायावती के शासन काल में 
((👐मोदी मूर्ख बनाते हें देश भक्तो 
👐अखलेश अफरादवादी 
भारत सरकार की इतिहास का कोई पता नही ))
2👊भारत देश वासियों 
जब बहन मायावती जी ने भीम राव अम्बेडकर पार्क बनवाया तो आप लोगों ने विरोध किया था - - मायावती जी ने हाथी एवं मूर्तियाँ का पार्क कि जगह कम्पनी बनवाती तो अच्छा होता 
जब कि बहन कु.मायावती जी      
 
विश्व महिलाओ में से थी                   

समजना बनवाया

 महान मानवों का फिर आप                 लोगो ने विरोध क्यों किया 

क्योंकि विश्व में से थी मायावती जी एवं डॉ भीम राव अम्बेडकर जी का तो मूझे भी पता नही क्या कहूँ महान मानव जी को 
डॉ भीमराव अम्बेडकर जी 
इसी लिये देश विदेशों में  उनका सम्मान होता हें 

चलो मोदी सरकार ये भी कहो नही  होता बौद्ध धर्म पर 100में 5 नही माने जाते 

🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏 मोदी सरकार ने सरदार वल्लभभाई पटेल का पार्क एवं  डॉ भीमराव अम्बेडकर जी का पार्क बनवाया जा राहा हें 

भारत देश वासियों 

मोदी जी ने कौन सी कम्पनी खुलवादी  जो आप उसका विरोध क्यों नही करते 

चलो आपसे ये नही कहता कि आप विरोध करो - - -
 
   भारत देश वासियों 

 सही मानवों का सम्मान करने में आप भेदभाव करते 

चलो में ये नही कहता की 
मोदी जी को नही देखा वो पार्क बनवा रहे हें 

3👊मोदी जी आप के भक्त एव पद अधिकारी डॉ भीमराव अम्बेडकर जी को हरी बत्ती कहते हें 

 डॉ भीमराव अम्बेडकर जी
     (दलितों एवं शूद्रों )
को एवं गरीब लोगो के धर जाला दो पुलिस पुरुष इंचार्ज से महिलाएँ नग्न किये जाय और जेल भी उम्र केद केस भी लगा दिया जाये 
और दो गोमांस जाला दे होते तो पूरा प्रशासन हिला देते उन्हे फाँसी भी देते आप की नजरो में इंसानों से जादा जानवरो की सुरक्षा  हें 
    - - - बाबासाहेब जी के  विचार नही थे ये 

     भारत देश वासियों

आपने भक्तो एवं पद अधिकारीयों से कह दो हरी बत्ती को जय भीम बुद्धाम शरणम गच्छामि एवं 
पुलिस प्रशासन को कानून कुत्ते नही बच्चो को बच्चे  जानवरों से इंसान प्यारे होते हें नही तो

 हम लाल बत्ती दिखा देगे

   भारत देश वासियों 

चलो भारत देश में समानता 
को कदम तो बड़े जब देश में समानता होगी तो देश 150साल पीछे ना होता एक साल से अंदाज़ लागा लीजिये एक होकर क्या नही किया जा सकता
4👊अखलेश अफरादबादी सरकार का इतिहास sem2 मोदी जी 3👊
बहनजी  कु.मायावती जी की मूर्तियाँ तोड़ी फिर लगवाई चमक के साथ 
 विश्व महिलाओ में नाम हें जब की फिर भी मूर्ति तोड़ी थी 
बाबासाहेब की छुट्टियाँ बन्द की फिर चालू की कायदे के साथ फिर जयंतीया मनाई कायदे के साथ 
बहन जी की हर योजनायें के नाम बदले 
इनकी सरकार ने जीतने भी काम एवं योजनायें लागू की हें सब बहन जी की नकल की हें 
विश्वाश नही हें तो मिला लीजिये फिर भी नही कर पाये पूरी  
वेसे 100 में 5नही मानी जाती हें 
येही हें इन्हे इतिहास का पता 
देखा नही मोदी जी पार्क बना रहे हें 
गलत संस्कार हें आप के इंसानियत बोल्लिये सब के साथ - - - आरक्षण       
5👊आप कहते हें हम आरक्षण बाबासाहेब के विरोधी नही हें 

हार्दिक पटेल को गुजरात में तोड़ फोड़ पुलिस प्रशासन कहाँ से मिला 

क्या  हार्दिक को पहले ही जेल में नही डाला जा सकता था 
आप देश वासियों को sc.st.obc. (दलित शूद्र मुसलमानो )
गुजरात से मिटा लेने के काम किये 
आरक्षण obc में खुद को जोड़ना यदि को भी 
मुसलमानो को 5. 5%आरक्षण देने का दावा 
यानी खुद नही तो दूसरो को भिडना 
यानी युद्ध करा दो 
आरक्षण खत्म करने के लिये आप कही से नही निकल सकते 
जेसेकि - - जिसकी जितनी जनसँख्या उस की उतनी भागीदारी  

सब को समान्य करदो तो आरक्षण वेसे भी खत्म 
सब भाई - भाई हो जाये तो जीवन साथी भी हो गायेगे 
आप को महँगा पढ़ सकता था आरक्षण तो 

आपने डॉ भीमराव अम्बेडकर पार्क - - अपना लिया पर 

बाबासाहेब के विचार क्यों नही अपनाये 
वेसे भी आप लोगो ने आरक्षण नाम तक ही सीमित रहने दिया 
            
             धर्म 
6👊बाबासाहेब ने बुद्ध धर्म  अपनाया 
बौद्ध धर्म सिरेठ समानता उच्च विचार लायक हें 
बौद्ध धर्म तंत्र मंत्र उच्च नीच के लिये नही हें 
हिंदू धर्म अगर कल्पनिक नही हें तो 
हर मन्दिर हर पुजारी के पास भगवान हें तो फिर गरीब पुजारी के पास क्यों नही हें
जब मन्दिर के पुजारी के पास भगवान तंत्र मंत्र हें तो 

फिर पुजारी पर विपत्ति मन्दिर में ही आती हें तो फिर भगवान क्यों नही बच्चाते हें यदि केश हें 
और बन्द करवा दीजिये वो टी बी पे चल रहा झूठा प्रचार तावीज तंत्र मंत्र यदि लूट रहे हें 
गरीब को झूठे बाना के सरेआम लूट लिया जाता हें जनतातो अंजान हें पर आप हम लोग तो जनते हें 

  अगर आप को विश्वाश हें तो आर्मी जनता को वाट दीजिये.  सुरक्षा कब्ज एवं धन लक्ष्मी यंत्र 
आर्मी को सुरक्षा कब्ज मंत्र फिर नही शहीद होगे आपने फौजी भाई शहीद 

जनता को धनलक्ष्मी यंत्र जो देश हो जाये अमीर 
नही पडॆगा आप को जरूरत  देश को सम्भाल ने की

    भारत देश वासियों 

दोस्तो अगर थोड़ी सी भी इंसानियत हें 
तो बसपा की वजह से हें 

दोस्तो हिंदूराष्ट्र नही वो 
रक्षितराष्ट्र बनना चाहते हें 

दोस्तो क्यों पड़े हो जंगल सरकार में 
अब तो आजाओ बहन माया खड़ी हें भारत सरकार में 

कौन कहता हें की हमारे जज्बातो में आपका नाम नही 
ऐसा कोई नाम तो बता दो जो बसपा सरकार में नही 

बस आपको हमारे cast नाम से डरवाया जाता हें 
और मोदी यदि मुख्मंत्री बाबासाहेब को अपनाये जाता  हें 

भारत दे की शान बान जान हें तो बसपा सरकार में
जब ही तो मोदी अखलेश  यदि मुख्मंत्री कुर्बान हें बाबासरकार पर 

में ए नही कहता की मेरे जज्बातों में आ जाओ 
पर भारत देश की शान बचाने तो आ जाओ 

अब आप ही बताओ किसका इतिहास किसका काम किसकी योजनायें अच्छी हें 

चलो तो अब आपका भी हक बनता हें हर देशबासी  तक पहुँचाने का - - -  जय भीम जय भारत

Tuesday, January 12, 2016

विपश्यना सीखो

[11/01 20:38] ‪+91 97574 49285‬: 💐आनापान साधना के लाभ💐

1- मन एकाग्र(concentrate) होने लगता है।
2- मन से भय, चिंता, तनाव दूर होने लगते हैं।
3- घबराहट(nervousness) जाती रहती है।
4- पढाई में मन लगता है और इसमे खूब प्रगति होने लगती है।
5- खेल- कूद व विविध कलाओं में कुशलता आती है।
6- कोई भी बात समझने और समझाने की शक्ति बढ़ जाती है।
7- आत्मविश्वास(self confidence) बढ़ता है।
8- सजगता(awareness) 
बढ़ती है।
9- आपसी सदभावना बढ़ती है।
10- मन खूब सबल(powerful) हो जाता है।

🌷 बच्चे ये लाभ पाने के लिए प्रतिदिन 10-15 मिनिट का दो बार नियमित अभ्यास जरूर करें।

सबका मंगल हो !
[11/01 20:38] ‪+91 97574 49285‬: 🌹गुरूजी, मै एक विपश्यी साधक हूँ।मेरी पत्नी आज से दस साल पहले मेरे भाईयो ने उसे जो कटु शब्द कहे थे उसे भूल नही पा रही है।मैंने बहुत समझाया पर वह उस कारण से दुखी ही रहती है।गुरूजी आप मुझे बताएं कि मै क्या करूँ?

उत्तर--दस साल पहले के घाव को याद कर करके उसे ताजा करने जा रही है तो वह अपने दुखो का संवर्धन ही कर रही है।

कोरे उपदेशो से अपने आप को दुखी बनाये रखने का यह स्वभाव बदल नही पायेगा।

🌷 विपश्यना सीखो और विपश्यना करते समय जब जब वह घटना याद आये तो एक अच्छी विपश्यी साधिका की तरह न उसे दबाने का प्रयत्न करें, न दूर करने का प्रयत्न करें।

उसकी सच्चाई को स्वीकार करें। इस समय मेरे मानस में अप्रिय स्मृति(याद) जागी है, इसे स्वीकार करते हुए इस समय शरीर में जो संवेदना है उसे तटस्थ भाव से देखना शुरू कर दें। 

अच्छी तरह विपश्यना करेगी तो खूब समझेगी की यह संवेदना अनित्य है और इस समय चित्त में जो स्मृति जागी है वह इससे जुडी है, इसलिये यह स्मृति भी अनित्य है।
देखते हैं कितनी देर रहती है।

यों साक्षी भाव से, तटस्थ भाव से देखना सीख जायेगी तो इस स्मृति का दमन नही होगा, शमन हो जाएगा।

स्मृति रहेगी तो भी उसके साथ जो दुःख का कांटा लगा हुआ है वह दूर हो जायेगा।

विपश्यना द्वारा इस दुखी होने के स्वभाव से बाहर निकलना चाहिये।

🌹गुरूजी--हमें अपनी जबान पर कंट्रोल रखना बहुत आवश्यक है।
ऐसा नही होता इसलिये एक नासमझ आदमी समय-असमय, उचित-अनुचित, अनुकूल-प्रतिकूल चाहे जैसे शब्दों का प्रयोग कर लेता है और वातावरण में कड़वाहट भर देता है।
तभी कहा-

मत बोलै रै मानखा,
असमय अनुचित बोल।
जब बोलै तब समझ कर,
बोल प्यार का बोल।।

🍁शब्द बड़े अनमोल है।उचित समय पर बोले गए प्रभावशाली उचित शब्द की कोई कीमत नही आंकी जा सकती।

शब्द बराबर धन नही,
जो कोई जाणे बोल।
हीरा तो दामो मिलै,
शब्दै मोल न तोल।।

हीरे की कीमत आंकी जा सकती है, पर धर्ममय सुभाषित बोल की कोई क्या कीमत आंकेगा भला?
इसलिये जब बोले तब सार्थक धर्ममय कल्याणकारी बोल ही बोलें।
तभी भगवान् ने कहा--

 सहस्समपि चे गाथा,
अनत्थपदसंहिता।
एकम धम्मपदम् सेय्यो,
यम सुतवा उपसम्मति।।

एक हज़ार निरर्थक पदों के बोलने के स्थान पर भले एक ही धर्मपद बोले, जिसे सुनकर चित्त शांत हो जाए।
जब बोले तो होश के साथ ही बोले।

💐आनापान साधना के लाभ💐

1- मन एकाग्र(concentrate) होने लगता है।
2- मन से भय, चिंता, तनाव दूर होने लगते हैं।
3- घबराहट(nervousness) जाती रहती है।
4- पढाई में मन लगता है और इसमे खूब प्रगति होने लगती है।
5- खेल- कूद व विविध कलाओं में कुशलता आती है।
6- कोई भी बात समझने और समझाने की शक्ति बढ़ जाती है।
7- आत्मविश्वास(self confidence) बढ़ता है।
8- सजगता(awareness) 
बढ़ती है।
9- आपसी सदभावना बढ़ती है।
10- मन खूब सबल(powerful) हो जाता है।

🌷 बच्चे ये लाभ पाने के लिए प्रतिदिन 10-15 मिनिट का दो बार नियमित अभ्यास जरूर करें।

सबका मंगल हो !

🌹गुरूजी--पुतदारस्स सङ्गहो- यह बारहवा मंगल धर्म है।इसका अर्थ है पत्नी और पुत्र(संतान) को प्रसन्न रखना ।

🍁एक गृहस्थ अपनी पत्नी को कैसे जोड़कर रखता है? यह तभी होगा जबकि पति अपनी पत्नी को सदा संतुष्ट प्रसन्न रखने के लिये उसका सम्मान करेगा।

उसे कभी अपमानित नही करेगा। कभी व्यभिचार नही करेगा।पत्नी गृहस्वामिनी है अतः उसे सारी धन संपत्ति की अधिकारिणी बनाएगा।

यों संतुष्ट प्रसन्न रहती हुई पत्नी भी आदर्श जीवनसंगिनी का धर्म निभाएगी।वह घर के सभी कामो का कुशलपूर्वक संचालन करेगी।अपने तथा पति के सभी स्वजनों , सगे संबंधियो का आदर सत्कार करेगी।
व्यभिचारिणी नही होगी।पति ने उसे जो धन सम्पदा सोंपी है, उसकी पूर्णतया रक्षा करेगी।अपनी जिम्मेदारियों के सभी कामो में दक्ष रहेगी, ततपर रहेगी, निरालस रहेगी।यानी आलस और प्रमाद में पड़कर अपने कर्तव्यों से विमुख नही हो जायेगी।

इस प्रकार दोनों धर्ममय दाम्पत्यमय जीवन का संग्रह करेंगे।

सम्बन्ध विच्छेद से यानी डाइवोर्स से जीवन में जो दुःख आता है उससे बचे रहेंगे।

🌷 इसी प्रकार दोनों अपनी संतान को भी जोड़े रखेंगे।

सात वर्ष की उम्र तक उन्हें लाड-प्यार से अच्छा जीवन जीना सिखाएंगे।

आठ से सोलह वर्ष की उम्र तक उन्हें संयमित और अनुशासित जीवन जीने की शिक्षा देते हुए लाड-प्यार के साथ साथ जहाँ आवश्यक होगा वहां सख्ती बरतेंगे, प्रशासित करेंगे।

इस प्रकार अच्छा जीवन जीना सिखाएंगे।

सोलह वर्ष की उम्र के बाद उन्हें एक मित्र की भाँति अच्छी सलाह-मशविरा देकर समझायेंगे।

यों एक आदर्श माता-पिता का कर्तव्य निभाएंगे।

यदि माता पिता अपने बच्चों को सही रास्ते पर चलने की शिक्षा देने के लिये समय नही निकालते तो बच्चे गलत रास्ते पड़ जायेंगे।आवारा होकर अच्छे जीवन पथ से भटक जाएंगे।

🌷गुरूजी धर्मसेवा क्या है?

उत्तर- हमारी वह सेवा जो किसी भी व्यक्ति में धर्म जगाने में सहायक होती है, उसको धर्मसेवा कहते हैं।



Rare Human Birth

💐Rare Human Birth💐

The Buddha had often said that to be born as a human being is a very rare feat. 

One of His disciples then asked the Buddha how rare was the occasion, and to give an example for clarification. 

The Buddha said:

"Monks, suppose that this great earth were totally covered with water, and a man were to toss a yoke with a single hole therein. 

A wind from the east would push it west, a wind from the west would push it east. A wind from the north would push it south, a wind from the
south would push it north. 

And suppose a blind sea-turtle were there. It would come to the surface once every 100  years.

Now, what do you think? Would that blind sea-turtle, coming to the surface once every 100 years, stick his neck into the yoke with a single hole?"

Monks : "It would be a sheer coincidence, lord, that the blind sea-turtle, coming to the surface once every 100  years, would stick his neck into the yoke with a single hole."

🌷 "It's likewise a sheer coincidence that one obtains the human state. 

🌷 It's likewise a sheer coincidence that a Tathàgata, worthy and rightly self-awakened, arises in the world.

🌷 It's likewise a sheer coincidence that a doctrine and discipline expounded by a Tathàgata appear in the world. 

💐 Now, this human state has been obtained. 

A Tathàgata, worthy and
rightly self-awakened, has arisen in the world.

A doctrine and discipline expounded by a Tathàgata appears in the world.

Therefore your duty is to contemplate: 

'This is Dukkha… 

This is the origination of Dukkha… 

This is the cessation of Dukkha… 

This is the path of practice leading to the cessation of Dukkha."

(Majjhima Nikàya 129.24)
(Samyutta Nikàya LVI.48)

How does Vipassana help us

💐 How does Vipassana help us to stop tying new knots and to open up the old ones, eradicating all the accumulations of the past? 

Ans : A meditator should sit correctly nisinno hoti pallankam abhujitva ujum kayam panidhaya cross-legged and erect. 

Then he sits with adhitthana (determination), no movement of the body of any kind. 

Now at the grossest physical level, all the bodily and vocal actions are suspended so there can be no new physical kamma (kayika-kamma) or vocal kamma (vacika-kamma).   

Now one is in a position to try to stop mental kamma formations (mano-kamma). 

For this, one has to become very alert, very attentive, fully awake and aware, all the time maintaining true understanding, true wisdom. 

🌷 Aware of what? 

Anicca vata sankhara, uppadavaya-dhammino-the truth of impermanence; the arising and passing of every compounded phenomenon within the framework of one's physical structure.  

Monday, January 11, 2016

"तथागत..क्या ईश्वर है"?

🌻 नमो बुध्दाय 🌻

सुप्रभात--- आपका मगंल हो

शरद पूर्णिमा का समय था..बुद्ध एक गाँव से अपने शिष्य आनंद और स्वास्ति के साथ निकल रहे थे..अचानक एक व्यक्ति आया और बुद्ध से पूछ दिया.."तथागत..क्या ईश्वर है"?
बुद्ध ने पूछा "तुम्हें क्या लगता है? 
आदमी सर झुकाया और धीरे से कहा" तथागत मुझे तो लगता है.. ईश्वर है" बुद्ध आनंद कि तरफ देखकर मुस्कराये और धीरे से कहा..."बिलकुल गलत लगता है तुम्हें"..इस अस्तित्व में ईश्वर जैसी कोई चीज नहीं" 
आदमी हाथ जोड़ा और चला गया...
बुद्ध गाँव की पगडंडी पर आगे बढ़े.आह वही दिव्य स्वरूप..तेजोमयी शरीर.जो देखता अपलक देखता रह जाता...गाँव गाँव शोर हो जाता..बुद्ध आ रहे हैं.....
गाँव से निकलते ही एक और आदमी आया...और पूछा.."तथागत.मैं कई दिन से परेशान हूँ..मुझे लगता है कि ईश्वर और भगवान की बातें महज बकवास हैं"
बुद्ध हंसे.. आनंद स्वास्ति कि तरफ देखकर मुस्कराया..बुद्ध ने बड़े प्रेम से कहा..."मूर्ख तुम्हें बिल्कुल गलत लगता है..इस अस्तित्व में सिर्फ ईश्वर ही है और कुछ नहीं"
जरा देखो तो..आँख बन्द करो तो..खोजो तो एक बार"
इस जबाब को सुनकर आनंद और स्वस्ति आश्चर्य में पड़ गए...एक ही सवाल और दो जबाब..
दूसरे दिन कि बात है.... एक गाँव के बाहर रात्रि विश्राम हेतु बुद्ध रुके हुए हैं...आज तो स्वास्ति और आनंद भी थक गए...कितना पैदल चलना पड़ता है रोज....भोजन के लिए भिक्षा मांगनी पड़ती है..
तभी अचानक एक घबराये हुए आदमी का प्रवेश हुआ..वो बुद्ध के पास आया और जोर से कहा..."तथागत..क्या ईश्वर है? या नही है?..मैं परेशान हूँ.मैं खोज रहा हूँ...मार्गदर्शन करें"?
कहतें हैं इस तीसरे आदमी के सवाल पर बुद्ध चुप हो गए कुछ न बोले.... देर तक चुप रहे..मौन हो गए..आँख बन्द कर लिए..
लेकिन आनंद और स्वास्ति के आश्वर्य का ठिकाना न रहा....एक जैसे तीन सवाल और अलग अलग जबाब.. बुद्ध की ये चुप्पी हैरान कर गयी...
व्यक्ति के जाते ही..आनंद से रहा न गया..वो पूछ बैठा " तथागत..कल से लेकर आज तक तीन व्यक्ति एक ही तरह के सवाल लेकर मिले...लेकिन मैं हैरान हूँ कि आपने तीनों का अलग अलग जबाब दिया.मुझे कुछ समझ में नहीं आ रहा...
बुद्ध मुस्कराये..और स्वास्ति कि तरफ देखकर कहा.."आनंद..जो पहला व्यक्ति आया था..उसने मान लिया था कि ईश्वर है...मैं उसकी मान्यता को मिटा देना चाहता था...कि वो खोजना शुरू करे..ईश्वर है ये मानकर बैठ न जाय..वो सत्य तक पहुंचे.."
दूसरे व्यक्ति ने भी मान लिया था कि ईश्वर कि बातें कोरी हैं..मैंने उसके धारणा को भी मिटा दिया..ताकि वो भी खोजे कि ईश्वर है या नहीं...और तीसरा व्यक्ति अभी संशय में था..खोज रहा था..मैं मौन रह गया..वहां मौन रह जाना उचित था...
देखो आनंद इस संसार में कुछ भी मानने वाले लोग जानने से चूक जातें हैं. उनका विकास रुक जाता है जिनका स्वयं का कोई बोध नहीं होता....वो सत्य क्या है कभी नही जान पाते...
जान वही पाता है वो निरंतर खोज रहा..आनंद जानने कि यात्रा मुश्किल है.मानना आसान है....मानने में कोई खर्च नही. कोई परिश्रम।नही...कोई कह दिया..समझा दिया..मान लिया...लेकिन मानकर रुक जाने वाले लोग इस संसार के सबसे अभागे प्राणी हैं...आनंद..बोध के बिना ज्ञान व्यर्थ है"।
(आर.पी.एस.हरित,बामसेफ)

मंदिर जहां भगवान बुद्ध का दांत रखा है

[3:42PM, 1/10/2016] Rakesh Leelawatj Ñ Nnnnñn: यह है दांत  मंदिर जहां भगवान बुद्ध का दांत रखा ह
       कैंडी यहां प्रमुख शहर ह कभी यह श्रीलंका की राजधानी हुआ करता था जब से लंका में राज शासन था तब श्री लंका के राजा यहां रहते थे और जब राजशाही का अंत हुआ तब कैंडी में ओपनिवेशिक आवाजाही बड़ी इन में उपनिवेश काल की झलक देखने को मिली है कैंडी कई प्रतिष्ठित  बुद्ध मंदिर है मान्यता ह की भगवान बुद्ध के अंतिम संस्कार के बाद एक अनुयाई ने बुद्ध की चिंता से उनका दांत निकाला गया और राजा  बहा दत्त को दे दिया  कई बार  लड़ी गई  सन 301 से 328 के मध्य वह दांत श्रीलंका किया के अलग-अलग स्थानों में रखे जाने के बाद केंडी पहुंच गया वहां के राजा मैं उस रात को एक मंदिर में विविध प्रकार के औषधीय पौधे भी पाए जाते हैं इसके अलावा यहां हमने चाय के बागान भी देखे
कैसे जाएं दिल्ली मुंबई चेन्नई बेंगलुरु हैदराबाद समित के समय देश के कई प्रमुख शहरों में से फ्लाइट के माध्यम से कोलंबो जा सकते हैं ं
प्रमुख स्थान कोलंबो कैंडी  एलिफेंटा  यूथ विंग जिलाध्यक्ष मेघवाल समाज राकेश लीलावत राजस्थान जिला पाली तहसील जेतारण निंबोल मोबाइल नंबर 8058 576 477 जय भीम जय मेघ जय भारत
[3:45PM, 1/10/2016] Rakesh Leelawatj Ñ Nnnnñn: यह है दांत  मंदिर जहां भगवान बुद्ध का दांत रखा ह
       कैंडी यहां प्रमुख शहर ह कभी यह श्रीलंका की राजधानी हुआ करता था जब से लंका में राज शासन था तब श्री लंका के राजा यहां रहते थे और जब राजशाही का अंत हुआ तब कैंडी में ओपनिवेशिक आवाजाही बड़ी इन में उपनिवेश काल की झलक देखने को मिली है कैंडी कई प्रतिष्ठित  बुद्ध मंदिर है मान्यता ह की भगवान बुद्ध के अंतिम संस्कार के बाद एक अनुयाई ने बुद्ध की चिंता से उनका दांत निकाला गया और राजा  बहा दत्त को दे दिया  कई बार  लड़ी गई  सन 301 से 328 के मध्य वह दांत श्रीलंका किया के अलग-अलग स्थानों में रखे जाने के बाद केंडी पहुंच गया वहां के राजा मैं उस रात को एक मंदिर में विविध प्रकार के औषधीय पौधे भी पाए जाते हैं इसके अलावा यहां हमने चाय के बागान भी देखे
कैसे जाएं दिल्ली मुंबई चेन्नई बेंगलुरु हैदराबाद समित के समय देश के कई प्रमुख शहरों में से फ्लाइट के माध्यम से कोलंबो जा सकते हैं ं
प्रमुख स्थान कोलंबो कैंडी  एलिफेंटा 
 
यूथ विंग जिलाध्यक्ष मेघवाल समाज राकेश लीलावत राजस्थान जिला पाली तहसील जेतारण निंबोल मोबाइल नंबर 8058 576 477 जय भीम जय मेघ नमो बुद्धाय💐💐💐💐💐💐💐🌻🌻🌻🌻🌻🌻🌻🌻

अरब कि मरूभूमी मे बुद्ध का सितारा चमकता था

अरब कि मरूभूमी मे बुद्ध का सितारा चमकता था।

भैतिक प्रगती ने संसार में  सर्वोच्च स्थान हासिल किया है एवं  प्रत्येक देश के पास  सुरक्षा के लिए अत्याधुनिक मिसाईले होने के बावजूद आतंकवाद मानवजगत के लिए खतरा बन चुका है। आतंकवाद और ब्राम्हणवाद ने  भारत को तबाही के कगार पर खडा किया है। आंतकवाद और ब्राम्हणवाद  मात्र मनुष्य और आर्थिक समृध्दि को आघात पहुचता ने तक सिमीत नही है बल्कि विश्वस्तर कि सांस्कृतियों में सबसे जादा वैश्विक बौद्ध प्राचिन स्थलो को नेस्तनाबुत भी किया है। कभी ओसाबीन लादेन ने तबाह किया, तो कभी आर्थिक समृध्दि के नाम पर उद्द्योग जगत प्राचीन बौद्ध  स्थलों को नष्ट  कर रहा है। तो कभी ब्राम्हाणवादीयों ने हिन्दुत्व का नारा देकर प्राचिन बौद्ध  स्थलो पर अतिक्रमण करके उसके अस्थींत्व को सबसे जादा नष्ट किया है।  तभी बुद्ध  के धम्म का वैभव पिछले 2600 साल से मानवजगत में यथावत है। हालही में आईएसआईएस नाम का आंतकवादी संघटन, अरब कि खाडी देशों में गंभीर संकट बनकर उभरा है जिसने पल्माइरा, सिरीया के  प्राचीन  स्थलों को नेस्तनाबुत कर चुका है जहा कभी बुद्ध  के धम्म का सितारा चमकता था।
 
सम्राट अशोक के सिरीया  के प्राचीन पल्माइरा शहर से संबंध थे। इस शहर पर इस्लामिक स्टेट (आईएस) के आतंकवादीयों ने कब्जा कर लिया। यह शहर यूनेस्को की विश्व विरासत सूची में शामिल है। यहां प्राचीन भग्नावशेष हैं जो प्राचीन सांस्कृतिक लिहाज से काफी महत्व रखते हैं। इन धरोहरों को आतंकी संगठन द्वारा नुकसान पहुंचाया गया है। आईएस इससे पहले इराक में प्राचीन धरोहरों को नष्ट कर चुका है। पाल्मीरा पर सीरिया के गृहमंत्री मोहम्मद अल शार का कहना है कि सरकार इस ऐतिहासिक स्थल को बचाने की पूरी कोशिश कर रही है। उन्होंने कहा कि दुनिया की भी पल्मीरा को बचाने की जिम्मेदारी है। सीरिया में प्राचीन वस्तुओं की देखभाल के प्रमुख मामुन अब्दुल करीम के मुताबिक सैकड़ों बहुमूल्य प्राचीन कलाकृतियों को ऐतिहासिक स्थल पर मौजूद संग्रहालय से हटाकर सुरक्षित जगह पहुंचा दिया गया है। लेकिन उन सुंदर प्राचीन कलाकृतीयों और कब्रगाहों को बचाना मुश्किल है जो शहर में ही मौजूद हैं, जिन्हें हटाया नहीं जा सकता।

समय बदलता है तो सामाजिक परस्थितीया बदलती है, शब्द बलते है, शब्दों के अर्थ बदलते है। संस्कृति के रूप-रंग में बदलाव भी होता है लेकिन उसके मूल रूप को नही बदला जा सकता। सीरिया के प्राचीन शहर पल्माइरा शहर का शब्द  "पिपलपेड" के शब्द का भ्रमीत शब्द है जिसकी जळो को धरती ने संभाले रखा था। इस लेख का मुख्य  स्त्रोत राहूला विश्वविद्यालय, श्रीलंका के कुलपती महान बौद्ध भिक्खु महास्थरवीर डॉ. परवाहेरा पन्नानंदा  के शोध पत्र है। इस शोध से यह स्पष्ट होता है की इस्लाम पूर्व अरब  में बुद्ध के हयात में ही अरर्हं महास्थवीर पन्नया नाम के बौद्ध भिक्खु‍ सिरीया चले गये थे और उनके गृहनगर कि पहचान इसी पल्माइरा में पिपलपेड के रूप में हो चुकी थी। जिसके प्रमाण श्रीलंका में आज भी है। 

राजा एंटीयोगस (231-347), मिश्र का राजा का राजा टालोमी फिलडेल्फे स (285-247), अंतेकित का रजा मैसिडोनिया (मक दुनिया) एंटिगोनस गोनेटस (276-239) उत्तरी अफ्रिका मे साईरीन का राजा मैगास (282-258) और इपिरंस का राजा एलेक्जें6डर (278-255) और सिरीया का राजा थियोस एंटीयोकस तथा द्वितीय एंटीयोकस (260-246) तथा कारिन्थी का राजा एलेक्जेंडर (252-244) इन अरब और ग्रिक के राजाओं से सम्राट अशोक के संबंध मानवकल्याण की सच्चीे लगन के लिए स्थापीत हो चुके थे। जहा सम्राट अशोक ने बौद्ध  भिक्षुओं को भेजकर उन बौद्ध  भिक्खुओं ने सच्ची लगन से कार्य किया और अरब से लेकर भारत के वासीयों ने 'देवानामप्रिर्यदर्शी' की उपाधी से सम्राट अशोक को सम्मानीत किया। आज भी सम्राट अशोक को अरब की मरूभुमी ने 'अक्सु' के नाम से जाना जाता है।
 
विश्व बौद्ध समुदाय शाक्यमुनि बुद्ध कि धरती को "बुद्ध" की धरती मानते है ठिक इसी प्रकार अरब में बुद्ध को 'अरहदी बुदगुबा' (Arahadi Buduguba) कहा जाता है तथा  इस्लामिक दुनिया के धार्मिक स्थलों के उप्परी गुम्बज को तुप्पे, तुपे और टेपे कहा जाता है एवं  मक्का में पवित्र पूजा स्थल को 'कब्बाह' कहा जाता है। इन शब्दों का मूल स्रोत पालि-प्राकृत भाषा का 'स्तूप' शब्द है। जिसका  उच्चारण अरब में कूब्बे-त्युबे और काबा होता है। अरब  के 'बड़े खलीफा' अपनी ज्ञानपिपासा को पुष्ट करने के लिए भारतीय बौद्ध भिक्खुओं को सम्मानपूर्वक आमंत्रित कर उनसे धर्मज्ञान ग्रहण करते थे।सम्राट अशोक के समय बौद्ध भिक्खु अलेक्सेन्द्रिया में पहुच चुके थे एवं भारतीय व्यापारीयों ने वहा बस्तिया भी बसा ली थी। 

रोम साम्राज्य के विस्तार का अध्ययन में यह भी देखा की सम्राट अशोक द्वारा भेजे गए धम्मदूतो में महास्थविर धर्मरक्षित थे जिन्होंने प्यासें यूनानी जगत की प्यास बुद्ध के धम्म से बुझाई थी। समय बदला बदल गई दुनिया और भुल गये अरबवासी  अपने अस्थित्व को तभी नही भुला पाये प्राचीन बौद्ध सांस्कृतिक सभ्यता को। आज भी अरब, मिश्र और ग्रिक के  देशो में 'थेराप्युतों' का अपना जीवन भारतीय थेरवादी बौद्ध भिक्खुओ से बहुत अधिक मिलता है। आज इन थेराप्युतों की परम्परा 'थेराप्यूटिक्स' नाम से पाश्चात्य चिकित्सा का एक अंग बन चुकी है। सोचता हूँ की कभी अरब के मरुभूमि में बुद्ध के धम्म  का स्वर्णीम युग रहा। अरब के मरुभूमि में विविध राजवंशो ने चार सहस्त्र वर्षो तक शासन किया यह भी मुझे याद है और अल-अरहर विश्विद्यालय की दीवारों पर आज भी सम्राट अशोक का 'धम्मचक्र' विद्यमान है। यह इन्ही राजवंशो की देन  है। यह भी ज्ञात होता है की मिस्र का यूनानी राजा टॉल्मीन, भारतीय बौद्ध साहित्यों का अनुवाद कराने के लिए उत्सुक था। संसार को मिस्र की सांस्कृतिक सभ्यता ने कुछ दिया तो कभी मिस्र और अरब में बुद्ध के धम्म के का सितारा चमक रहा था। 

एक प्रतिष्ठित इस्लामी विद्वान प्रोफेसर मारगोलियथ (Margoliouth) निम्नलिखित कहना है की  'अल्लाह' "इस प्रणाली के रूप में इस्लाम के नाम का मूल अर्थ" अस्पष्ट है, लेकिन इसकी आधिकारिक व्याख्या अल्लाह के लिए अपनी सम्पूर्ण समर्पण एक व्यक्ति के लिए है। 

'बल्ख' बौद्ध रिकॉर्ड के अनुसार मोहम्मद द्वारा इस्लाम की स्थापना करने से पहले सीरिया और अरब के उत्तरी भागों में बुद्ध के "अरहंत पथ" (Alaha) का अभ्यास यहा की जनता करती थी। शिलालेखात्मक सबूतों से यह तथ्य प्रकट हुऑ है की अरहंत पथ को "अल्लाह" के रूप में    सीरिया और अरब के उत्तरी भागों में स्विकारा गया लगता था। सिरीया के संस्कंति में यह भी दिखा की  महाथविर पुन्ना  द्वारा भगवान बुद्ध के जीवन के निकट समय के दौरान सीरिया और अरब के उत्तरी भागों के क्षेत्र में 'सिनाई अराबा' (अरबी में बौद्ध विहार) स्थापीत किया थाह प्राचीन सीरिया क्षेत्र सिनाई अराबा की पहचान प्राचीन पल्माइरा के  पास  स्पष्ट कि गयी  है और इस क्षेत्र में अरहंत महाथविर पुन्ना द्वारा मिशनरी काम से बुद्ध के शिक्षा को प्रबल प्रवाहीत किया था। और चार बौद्ध विहारों की स्थापना अभयारण्यों में की थी। 

बाबासाहेब डॉ. अम्बेडकर ने अपने खंड 18 पार्ट 3 में सही कहा अफगानिस्तामन से लेकर मध्य‍ एशिया के लोग 100 प्रतिक्षत बौध्द ही थे। सिरीयावासी बुद्ध के अनमोल धम्म रत्न  को  भुल चुके थे लेकिन उस पल्माइरा के क्षेत्र में प्राचीन स्थालों को सभाले हुऐ थे दुनिया का  प्रथम ब्राम्ह्णवादा का आंतकवादी पुष्यरमित्र शुंग जिसने बौद्ध सांस्कृातिक सभ्यता को ध्वस्त करने का सिलसिला चलाया और उसी के कदमों पर चलकर इस्लामिक स्टेट (आईएस) के आतंकवादीयों ने उस प्राचीन पल्माइरा के प्राचीन स्थलों को ध्वस्त किया ।

तथागत बुद्ध ने कहा कि मै 4 तरह के लोग संसार में देखता हूँ

☀तथागत बुद्ध ने कहा कि मै 4 तरह के लोग संसार में देखता हूँ।

🌑(1) अँधेरे से अँधेरे की ओर 🌑

जिनके जीवन में अँध:कार है यानि गरीबी है,
व्याकुलता है।
फिर भी वह क्रोध जगाता है, द्वेष जगाता है।
इसने ऐसा कर दिया इसलिये मैं दुखी हूँ, ऐसा मानता है।
ऐसा व्यक्ति आज तो दुखी है ही,
आगे के लिये भी दुःख के बीज बो रहा है।
यानि अँधेरे की तरफ बढ़ रहा है।

🌓(2) अँधेरे से प्रकाश की ओर🌓

इसके जीवन में अँधेरा तो है, लेकिन भीतर प्रज्ञा जाग रही है।
यह जो कुछ है मेरे किसी पूर्व दुष्कर्म से है,
किसी दूसरे को क्या दोष दूँ?  ये तो बेचारे माध्यम बन गए है।
तो अपना वर्तमान कर्म सुधारता है,
ओरो के प्रति मैत्री,
करुणा, सद्भावना जगाता है।
किसी के प्रति क्रोध नही,
द्वेष नही।
तो आगे के लिये प्रकाश ही प्रकाश है।

🌗(3) प्रकाश से अँधेरे की ओर🌗

यह व्यक्ति प्रकाश में है,
यानि धन है,
प्रतिष्ठा है,
पर अहंकार है,
सबसे घृणा करता है।
देखो मै कितना बुद्धिमान,
कितना मेहनती, ऐसा मानता है।
तो दुःख के बीज बो रहा है।
भविष्य में अँधेरा ही अँधेरा होगा।

🌕(4) प्रकाश से प्रकाश की ओर🌕

यह प्रकाश में है,
पर साथ साथ प्रज्ञा भी है।
अरे यह जो कुछ प्राप्त हुआ किसी पूर्व पुण्यकर्म से हुआ।
सदा रहने वाला नही।
तो लोगो की सेवा करता है,
उनमे  सामर्थ्य के अनुसार सहर्ष बाँटता है।
ओरो के प्रति मंगल कामना करता है।
तो आगे के लिये प्रकाश ही प्रकाश है।

आप सब का जीवन मंगलमय हो।
🍃🙏🍃

Books by Dr. BR Ambedkar डॉ भीमराव अम्बेडकर की लिखित, उनके जीवन और कार्यों पर, ओ.बी.सी., दलित, आदिवासी, बौद्ध साहित्य, और व्यवसाय और निवेश की पुस्तकें.

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5. आंबेडकर की आत्मकथा (रु 30)
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13. गांधी और अछूत विमुक्ति (रु 50)
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16. बुद्ध और उनका धम्म (रु 150)
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18. डॉ आंबेडकर की साक्षी साऊथब्रो कमेटी के समक्ष : रु 30.
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25. डॉ आंबेडकर और पंजाब : रु 500.
26. डॉ अम्बेडकर और कश्मीर समस्या : रु 250.
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28. बाबा साहिब डॉ आंबेडकर और महाप्राण जोगेन्द्रनाथ मंडल : रु 300.
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31. संयुक्त प्रांतीय शेड्यूल्ड कास्ट स्पेशल कांफ्रेंस आगरा की स्वागत-समिति की रिपोर्ट १० मार्च १९४६ ई. : रु 20.
32. डॉ. आंबेडकर के संपर्क में (लेखिका : सविता भीमराव आंबेडकर) : रु 250.
33. आंबेडकर और बौद्ध धम्म : रु 125.
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36. बाबासाहेब डॉ आंबेडकर कैसे पहुंचे संविधान सभा में? : रु 75.
C. भारत के पिछड़े वर्ग (O.B.C.) पर 39 विशेष पुस्तकों का सैट. Rs. 5900
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3.ललई सिंह यादव : दलित और पिछड़ों का मसीहा। रु 60.
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23. शिवजी कौन थे? रु 50.
24. प्रथम शूद्र चक्रवर्ती सम्राट महापदम नन्द। रु 100.
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26. रामस्वरूप वर्मा समग्र : भाग 1. : रु 300.
27. रामस्वरूप वर्मा समग्र : भाग 2. : रु 250.
28. अशोक महान : एक मानवतावादी व्यक्तित्व : रु 100.
29. महिषासुर : रु 50.
30. सम्राट हिरण्यकश्यप : रु 60.
31. सिंधु घाटी सभ्यता के सृजनकर्ता : शूद्र और वणिक : रु 200.
32. फूलन देवी जीवनी : रु 70.
33. नारायण गुरु जीवनी : रु 70.
34. सावित्री बाई फूले जीवनी : रु 70.
35. कबीर जीवनी : रु 70.
36. अन्याय की परम्परा के विरुद्ध (भगवान स्वरूप कटियार) : रु 300. 
37. प्राचीन धर्म संस्कृति का मोह क्यों ? (नाथूराम पटेल) : रु 80. (OBC)
37. अन्याय की परम्परा के विरुद्ध : रु 300.
38. बाद के हड़प्पाइयों का इतिहास तथा शिल्पकार आंदोलन : रु 250.
39. प्राचीन धर्म संस्कृति का मोह क्यों ? : रु 80.
D. पाली और ब्राह्मी भाषा सीखने के लिए, सम्राट अशोक के और बौद्ध लेखों पर पुस्तकें रु 1770. 
1. मोग्गल्लान पाली व्याकरण : रु 350.
2. पाली भाष्यकोश : रु 400.
3. पाली निस्सेनी : रु 125.
4. पाली परिचय : रु 250.
5. पाली समुच्चयो : रु 150.
6. ३१ दिन में पाली : रु 125.
7. महान सम्राट अशोक के खरोष्ठी, आर्मेइक और ग्रीक अभिलेख : रु 100.
8. आओ ब्राह्मी लिपि सीखें : रु 70.
9. भारत स्तूप गाथा : रु 100.
E. बौद्ध धम्मस्थलों व तीर्थों पर 12 पुस्तकों का सैट Rs. 2050.
1. भगवान बुद्ध की जन्मस्थली लुम्बिनी 
2. बौद्धगया अतीत से वर्तमान तक (का इतिहास)
3. बौद्धों के आठ महातीर्थ 
4. नालंदा का पुरातात्विक वैभव 
5. अयोध्या किसकी?
6. मगध: सद्धम्म के विकास एवं प्रसार की केन्द्रभूमि 
7. नागपुर और आसपास के प्रमुख बौद्ध स्थल 
8. प्राचीन बौद्ध नगरी कौशाम्बी 
9. कुसीनारा 
10. कुशीनगर का इतिहास 
11. राजगृह 
12. बौद्धगया पॉकेट बुक
F. विश्व एवं भारत के बौद्ध भिक्खुओं एवं बौद्ध धम्म पर विशेष पुस्तकों का सैट Rs. 1950
1. धम्म महानायक कौसल्यायन 
2. बुद्धधोसुप्पत्ति 
3. आचार्य सरहपा 
4. आचार्य चन्द्रकीर्ति 
5. आचार्य असंग 
6. आचार्य शान्तिदेव 
7. आचार्य शान्तरक्षित
8. भंते धर्मशील 
9. भिक्खु नागसेन 
10. आचार्य नागार्जुन
11. आचार्य धर्मकीर्ति 
12. आचार्य आर्यदेव 
13. चीनी बौद्ध यात्रियों के यात्रा विवरण 
14. प्राचीन भारत में बौद्ध धम्म प्रचारक 
15. चीनी बौद्ध धम्म का इतिहास
16. कोरिया का वोन बौद्ध धम्म 
17. आचार्य दीपांकरश्रीज्ञान
G. वाल्मीकि वर्ग पर :-
1. इस समय में : रु 100.
2. दिल्ली की गद्दी पर खुसरो भंगी : रु 40.
3. डॉ आंबेडकर एक परिचय (भगवान दास) : रु 60.
4. भंवर : रु 150.
5. मैला प्रथा : रु 75.
6. सफाई कर्मचारी दिवस : रु 40.
7. सीवर में ज़िंदा लाशें : रु 60.
8. छू नहीं सकता : रु 15.
9. नागवंशी हेला की कहानी हेला की ज़बानी : रु 40.
10. महान दलित क्रांतिकारी योद्धा मातादीन : रु 60.
11. सुनीत : रु 20.
12. शूद्रों की खोज (डॉ आंबेडकर) : रु 150.
13. अछूत कौन और कैसे? (डॉ आंबेडकर) : रु 75.
14. कांग्रेस और गांधी ने अछूतों के लिए क्या किया? (डॉ आंबेडकर) : रु 200.
H. बौद्ध धम्म पर 67 पुस्तकों का सैट(तिपिटक सहित)। मूल्य : रु 8500(डाक शुल्क सहित). 
1. संयुक्त निकाय (दो पुस्तकें, दो भागों में): रु. 725.
2. अंगुत्तर निकाय (चार पुस्तकें, चार भागों में): 875.
3. विशुद्धि मार्ग (दो पुस्तकें, दो भागों में): 600.
4. सुत्तनिपात: 200. 
5. दीघ निकाय : 250.
6. विनय पिटक : 350.
7. मझिम निकाय: 350.
8. थेरगाथा: 200.
9. थेरीगाथा: 100.
10. बोधिचर्यावतार: 175. 
11. बुद्ध और उनका धम्म (यहाँ तक कुल सोलह पुस्तकें): 150.
12. बुद्ध की धम्म साधना और पातंजल योग: 150.
13. बुद्ध ही भगवान थे: 50.
14. भगवान बुद्ध का राक्षसों को उपदेश: 30.
15. बुद्ध की शिक्षा: 70. 
16. बुद्ध शासन सुभाषित: 30.
17. बुद्धयुगीन भारत: 60.
18. सृष्टि चक्र: 40
19. जातिभेद और बुद्ध: 25
20. बुद्ध का महाप्रबोधन बनाम ईश्वर भ्रम: 20.
21. भगवान बुद्ध धम्म-सार व धम्म-चर्या: 150.
22. बुद्धकालीन वर्ण-व्यवस्था और जाती: 200.
23. मिलिन्दपन्ह: 200.
24. दर्शन वेद से मार्क्स तक: 80.
25. पुराणों में बुद्ध: 200.
26. बौद्ध पूजापाठ: 25.
27. विश्व के महान बौद्ध दार्शनिक: 200.
28. बौद्ध धम्म: एक बुद्धिवादी अध्यन्न: 80.
29. बुद्ध धम्म में बाईस प्रतिज्ञाओं का महत्त्व: 45.
30. खुद्दक पाठ: 30.
31. क्रांति के अग्रदूत बुद्ध: 20.
32. बुद्ध धम्म के दस आधारस्तम्भ: 70.
33. महामानव बुद्ध: 60.
34. भारतीय संस्कृति को बौद्ध धम्म की देन: 75. 
35. बौद्ध धम्म नहीं है हिन्दू धर्म की शाखा: 70. 
36. अशोककालीन दीपोत्सव जो दिवाली बन गया: 50.
37. बौद्ध धम्म में शून्यवाद: 75. 
38. बुद्धिजम और विज्ञान: 35.
39. नामकरण संस्कार और बौद्धों के पन्द्र हज़ार नाम: 40.
40. आओ विपश्यना सीखें: 50.
41. भरहुत स्तूप गाथा: 100.
42. बुद्ध और मार्क्सवाद: 20.
43. महान मनोचिकित्सक भगवान बुद्ध: 125.
44. तिपिटक दिग्दर्शिका: 100.
45. परम पराक्रमी राक्षसराज रावण: 30.
46. बौद्धचर्या प्रकाश: विवाह संस्कार: 80.
47. बौद्ध रत्नावली: 125.
48. इत्तुवितक: 55.
49. बौद्ध धम्म में कर्म का सिद्धांत: 60.
50. बौद्ध धम्म: मोहनजोदड़ो हड़प्पा नगरों का धर्म: 250.
51. चार्य पिटक: 45.
52. पंजाब में बौद्ध धम्म: 150 (यहाँ तक कुल 58 पुस्तकें)
53. भगवान किसे कहते हैं? रु 100.
54. मेरे शरण-गमन का इतिहास (संघरक्षित): रु 60.
55. भारत को किसने कमजोर किया: बुद्धिज़्म ने या ब्रह्मनिस्म ने? रु 75. 
56. भगवान बुद्ध की दिनचर्या : रु 60. 
57. प्राचीन भारतीय शिक्षा प्रणाली : रु 100.
58. बौद्धचर्या प्रकाश : बौद्ध पूजा पद्धत्ति, विवाह पद्धति : रु 80.
59. महान मनोचिकित्सक भगवान बुद्ध : रु 150.
60. बुद्ध का नीतिशास्त्र : रु 250.
61. बुद्ध धम्म के सामाजिक आयाम : रु 250.
I. बहुजन समाज पर पुस्तकें 
1. बहुजन नायक कांशीराम की ललकार: रु 175.
2. माया (मायावती) जैसी कोई नहीं: रु 125.
3. मान्यवर कांशीराम और बौद्ध धम्म: रु 60.
4. बहुजन समाज पार्टी बनाम भारतीय मीडिया: रु 60.
5. बहुजन समाज पार्टी और संरचनात्मक परिवर्तन: रु 50.
6. एक ज़िंदा देवी मायावती: रु 100.
7. कांशीराम और बहुजन समाज पार्टी: शंका और समाधान: रु 35.
8. बहुजन नायक कांशीराम जीवनी : रु 80.
9. बहुजन मसीहा कांशीराम के भाषण : खंड: 1. : रु 60.
10. बहुजन मसीहा कांशीराम के भाषण : खंड: 2. : रु 200.
11. सामाजिक परिवर्तन और बीएसपी : रु 175.
12. हिन्दू राष्ट्र से बहुजन राष्ट्र: 80.
13. बहुजन भारत में धार्मिक डाका : रु 60.
J. गुरु रविदास (रैदास) पर पुस्तकें:
1. ऐसा चाहूँ राज मैं… संत सिपाही रैदास : रु 150.
2. बोधिसत्व गुरु रैदास और उनके आंदोलन : रु 100.
3. रविदास सचित्र जीवनी : रु 70.
4. संत रैदास वाणी में बौद्ध चिंतन: रु 70.
5. संत शिरोमणि गुरु रविदास विचार दर्शन: रु 135.
K. दलित, आदिवासी और पिछड़े वर्ग पर पुस्तकें 
1. शोषित समाज के क्रन्तिकारी प्रवर्तक : रु 100.
2. य़ोग्यता मेरी जूती : रु 30.
3. श्रमण संस्कृति बनाम ब्राह्मण संस्कृति : रु 150.
4. रमाबाई आंबेडकर : रु 25.
5. भारत के मूलनिवासी और आर्य आक्रमण : रु 150.
6. डॉ. राम मनोहर लोहिया का राजनैतिक चिंतन : रु 20.
7. सम्राट अशोक चरित्र जीवनी : रु 60.
8. छत्रपतिशाहुजी महाराज (सामाजिक लोकतंत्र के भीम-स्तम्भ) : रु 20.
9. बहुजनों के सम्मान में : रु 20.
10. 
11. नेताओं की दौड़ दलितों की झोपडी तक क्यों? : रु 30.
12. भारतीय संविधान मनुस्मृति की गुलामी से मुक्ति : रु 40.
13. भारतीय संस्कृति और वामपंथ : रु 70.
14. भारतीय राजनीती में वंशवाद : रु 70.
15. ....
16. फूंकते कदम: एक अध्यन्न दलित आंदोलन का : रु 125.
17. भगवान की खोज : रु 100.
18. मृत्युभोज क्यों? : रु 30.
19. भारतीय साहित्य में महिलाओं पर अभद्र कहावतें : रु 80.
20. दहेज़ की आग में दहकती सुहागिन : रु 100.
21. 
22. 
23. सामाजिक आंदोलन और नई दिशाएं : 120.
24. दलित-मुस्लिम भाईचारा क्यों और कैसे? : रु 20.
25. 
26. जिरह धर्म बनाम अंधविश्वास : रु 70.
27. बीच बहस में: स्त्री, दलित और जातीय दंश : रु 80. 
28. भारतीय अर्थतंत्र निशाने पर : रु 80.
29. कौटिल्य अर्थशास्त्र या कुटिल शास्त्र अथवा मनुस्मृति की पुनरावृति : रु 30.
30. 
31. डॉ आंबेडकर और गांधी का योगदान: दलित और महिला उत्थान में : रु 350.
32. भारत की गुलामी में गीता की भूमिका : रु 100. 
33. भारत में नस्ल, धर्म, इतिहास, राजनीती और जाती व्यवस्था. : रु 250.
34. बाद के हडप्पाईयों का इतिहास तथा शिल्पकार आंदोलन : रु 250.
35. पवित्र गाय का मिथक : रु 200.
36. भारत में नस्ल, धर्म, इतिहास, राजनीती और जाती व्यवस्था. : रु 250.
L. दलित वर्ग पर पुस्तकें:-
1. दलित उत्पीड़न, उपचार और कानूनी संरक्षण : रु 60.
2. पूना पैक्ट बनाम गांधी : रु 100.
3. उत्तरांचल सहित उत्तर प्रदेश की दलित जातियों का दस्तावेज़ : रु 150.
4. दलित उद्यमियों के संघर्ष और सफलता की कहानी : रु 100.
5. भगाणा की निर्भयाएँ: दलित उत्पीड़न के अनवरत सिलसिले का दृष्टांत : रु 150.
6. दलित दस्तावेज़ : रु 200.
7. डाईवर्सिटी से बनेगा दलित पूंजीवाद (अमेरिकी डाइवर्सिटी और काले लोगों के अनुभव) : रु 60.
8. 
9. 
10. संयुक्त प्रांतीय शेड्यूल्ड कास्ट स्पेशल कॉन्फ्रेंस आगरा की स्वागत समिति की रिपोर्ट १० मार्च १९४६ ई : रु 20.
11. सारे जहाँ से अच्छा अम्बेडकर हमारा : रु 20.
12. मनुस्मृति जलाई गई क्यों? : रु 40.
13. अम्बेडकरवाद और मार्क्सवाद का द्वंद्वात्मक सम्बन्ध : रु 25.
14. शम्बूक वद्ध (नाटक) : रु 40.
15. डॉ आंबेडकर: एक परिचय एक सन्देश : रु 60.
16. डॉ आंबेडकर जीवन दर्शन : रु 75.
17. प्रजातंत्र में जाती, आरक्षण एवं दलित : रु 150.
18. 
19. 
20. हिन्दू समाज का विखंडन तथा दलितों की समस्याएँ : रु 150.
21. महाड़ तालाब पानी अधिकार आंदोलन : रु 25.
22. सिंधु घाटी सभ्यता के सृजनकर्ता शूद्र और वणिक : रु 200.
23. महाप्राण जोगेन्द्रनाथ मंडल: जीवन और विचार : रु 70.
24. अतीत से आजतक के भारतीय इतिहास में दलित व पिछड़ी जातियों की स्थिति : रु 150.
25. मीडिया में दलित ढूँढते रह जाओगे : रु 75.
26. हरियाणा के दलित हरित क्रांति से भी वंचित : रु 100.
27. उत्तर प्रदेश में दलित आंदोलन : रु 170. 
28. मोची का बेटा : रु 80.
29. दलितों की दुर्दशा: कारण और निवारण: रु 100.
M. आदिवासी साहित्य 
1. रामायण में आदिवासियों के खिलाफ एक षड़यंत्र : रु 200.
2. बिरसा मुंडा जीवनी : रु 70.
N. बहुजन नायक-नायिकाओं की बच्चों के लिए सचित्र जीवनियों का सैट (यह बड़ी उम्र के लोग भी पढ़ सकते हैं):- (15 पुस्तकों का डाक सहित मूल्य: रु 1150).
1. डॉ भीमराव अम्बेडकर जीवनी : रु 70.
2. बुद्ध जीवनी : रु 70.
3. सम्राट अशोक जीवनी : रु 70.
4. गुरु रविदास जीवनी : रु 70.
5. कबीर जीवनी : रु 70.
6. ज्योतिबा फूले जीवनी : रु 70.
7. बिरसा मुंडा जीवनी : रु 70.
8. सावित्री बाई फूले जीवनी : रु 70.
9. छत्रपति शाहूजी महाराज जीवनी : रु 70. 
10. स्वामी अछूतानन्द जीवनी : रु 70.
11. गुरु घासीदास जीवनी : रु 70.
12. गाडगे बाबा जीवनी : रु 70.
13. नारायण गुरु जीवनी : रु 70.
14. पेरियार जीवनी : रु 70.
15. फूलन देवी जीवनी : रु 70.
O.बच्चों के लिए सचित्र बौद्ध चरित्रों पर 40 पुस्तकों का सैट : रु 1200.
P. व्यवसाय और निवेश की सात पुस्तकों का सैट : रु 2000.
ENGLISH BOOKS;-
Q. New Collection :-
1. Annihilation of Caste by Dr. B.R. Ambedkar (the annotated critical edition and introduction by Arundhati Roy). Rs. 525.
2. Dispersed Radiance: Caste, Gender and Modern Science in India by Abha Sur. (This books shows that how scientific developments and scientific institutions in India have been influenced by caste and gender). Rs. 495.
3. Against the madness on Manu (by Dr. Br Ambedkar, introduced by Sharmila Rege). Rs. 350.
4. Seeking Begumpura: The social vision of anticaste intellectuals (by Gail Omvedt) : Kabir, Tuka, Kartabhajas, Phule, Iyothee Thass, Ramabai, Periyar and Dr. B.R.Ambedkar). Rs. 295.
5. Ambedkar's World: The making of Babasaheb and the Dalit movement. (by Eleanor Zelliot. Rs. 350.
6. The Persistence of Caste: The Kherlanji Murders & India's Hidden Apartheid. (by Anand Teltumbde). Rs. 295.
7. In Pursuit of Ambedkar (by Bhagwan Das). Rs. 175.
8. The Myth of Holy Cow (by D.N. Jha). Rs. 250.
9. The Exercise of Freedom: An introduction to Dalit Writing (edited by K. K. Satyanarayan and Susie Tharu). Rs. 175.
10. Unclaimed Terrain (By Ajay Navaria, a novel on life of a Dalit). Rs.295.
11. A word with you world (by Siddalingaiah, autobiography od a Dalit ). Rs. 395.
12. Ear to the ground: Selected writings on caste and Class (by K. Balagopal). Rs. 550.
13. A gardener in the wasteland: Jyotiba Phule's fight for liberty. Rs. 220.
14. Bhimayan: experiences of Untouchability. Rs. 325.
15. A spoke in the Wheel (by Amita Kanekar, a novel on the Buddha). Rs. 495.
16. In the Tiger's Shadow: The Autobiography of an Ambedkrite (by Namdeo Nimgade). Rs. 350.
17. Imagining a place for Buddhism: Literary culture and Religious community in Tamil-Speaking South India. (by Anne E. Monius) Rs. 350.
18. Religious Rebels in Punjab: The Ad Dharm Challenge to Caste (by Mark Juergensmeyer, a book on casteism in Punjab) Rs. 400.
19. People without History: India's Muslim Ghettos (by Jeremy Seabrook and Imran Ahmed Siddiqui) Rs. 295.
20. The Suffering People (by Balwant Singh, story of a Dalit Officer). Rs. 450.
21. Turning the Pot, Tiling the Land: dignity of Labour in our times (by Kancha Ilaiah). Rs. 200.
International Social Work:
22. Embodying Difference: The Making of Burakumin in Modern Japan (by Timothy D. Amos, a work on outcastes in Japan). Rs. 495.
23. Lose your mother: a journey along the Atlantic Slave Route (by Sadiya Hartman. Rs. 350.
24. Women Race and Class (by Angela Y. Davis). Rs. 295.
25. The Sublime Object of Ideology (by Zizek). Rs. 325.
26. Political Interventions: Social Science and Political Action (by Pierre Bourdieu). Rs. 490.
27. Abnormal (Psychology) (by Michel Foucault). Rs. 490.
28. The business of words (by Andre Schiffrin, on publishing and its social impact). Rs. 295.
29. Are Prisons Obsolete? (by Angela Y. Davis) Rs. 150.
30. Days of Destruction, Days of Revolt (by Chris Hedges and Joe Sacco, American history of slaughtering Red Indians). Rs. 595.
31. When Google met Wikileaks (by Julian Assange, on social impact of internet and freedom of publishing banned content). Rs.295.
32. Agitating the frame : Essays on Economy, Ideology, Sexuality and Cinema. Rs. 295.
R. Rare Books on Caste, Dr. B.R. Ambedkar and Buddhism
1. Reservations: Legal Perspective. Rs. 30.
2. Dr. Ambedkar on Indian History. Rs 30.
3. Ambedkar the Great. Rs 170.
4. Selected Speeches of Dr BR Ambedkar. Rs 60.
5. Dr Ambedkar on Jews and Negroes. Rs 10.
6. Buddhism in India after Dr BR Ambedkar (1956-2002). Rs 70.
7. Buddha and the Caste System. Rs 30.
8. Bodhisatva Baba Saheb Dr BR Ambedkar. Rs 60.
9. B.R. ambedkar Unique and Versatile. Rs 110.
10. History of Hindu Imperialism. Rs 150.
11. The Namasudras of Bengal. Rs 75.
12. The Founders of Indus Valley Civilization and their Later History. Rs 150.
13. Rise and Fall of Hindu Women. Rs 10.
14. Dhamma as told by Dr. Ambedkar. Rs 120.
15. Buddhist Cave Temples in India. Rs 25.
16. The Baba Saheb and the Untouchable Movement. Rs 250.
17. Castes in India: Their Mechanism, Genesis & Development. Rs 15.
18. Dalits after Partition. Rs 100.
19. Ethnology and Caste. Rs 40.
20. Understanding Bihar (from the perspective of a Dalit administrative officer) Rs 250.
21. How and Why Buddhism Declined in India? Rs 30.
22. Decline and Fall of Buddhism: A Tragedy in Ancient India. Rs 400.
23. Poona Pact of 1932. Rs 15.
24. A Study of Caste. Rs 100.
25. The Blue Book of Baba Saheb Dr B.R. Ambedkar. Rs 60.
26. The Native Indian in Search of Identity (a psychological study of Scheduled Castes and Scheduled Tribes). Rs 200.
27. Dr Ambedkar at the Round Table Conference London - 1930-1932. Rs 30.
28. Dhammapada: An Anthology of the Sayings of the Buddha. Rs 40.
29. Bamiyan Buddhas Senseless Destruction by Taliban. Rs 40.
30. Supreme Court on Reservation. Rs 50.
31. A Phenomenon Named Ambedkar. Rs 200.
32. Dr. Ambedkar on British Raj. Rs 60.
33. Dr. Ambedkar on Islam. Rs 30.
S. Studies on Dalits and Novel on Dr. Ambedkar:
1. Untouchable Past: Study on Satnami Caste and Untouchables in Central India. 400
2. Untouchable Citizens: Dalit Movements and Democratisation in Tamil Nadu. 400
3. Karamyogi Bharat Ratna Dr. B. R. Ambedkar (Historical Novel) by K.L. Kamal. 70.
T. Books by Dr. B.R. Ambedkar
1. What Congress & Gandhi Have Done to the Untouchables? 250
2. Pakistan or Partition of India 300
3. The Untouchables 200
4. Who were Shudras 200
5. Annihilation of Caste 50
6. Dr Ambedkar in Constituent Assembly 40
7. Castes in India 25
8. Thus Spoke Ambedkar (Volume 1) 400
9. Buddha or Karl Marx 25
10. Ranade, Gandhi & Jinnah 40
11. Federation versus Freedom 60
12. State and Minorities 200
13. Mr Gandhi and Emancipation of Untouchables 25
14. Selected Speeches of Dr BR Ambedkar (edited by DC Ahir) 60
15. Dr Ambedkar on Indian History (Edited by DC Ahir) 20
16 Buddha and his Dhamma 300.
Call M.: 8527533051, L. - 01123744243.

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