Wednesday, October 17, 2018

गौतम बुद्ध के विचार

चार महान श्रेष्ट सत्य :
1. दुनियाँ में दुःख है।
2. दुखों की कोई-न-कोई एवं कारण वजह है।
3. दुखों का निवारण मुमकिन है।
4. दुःख निवारण का मार्ग है ।
- दुखों की मूल वजह अज्ञान है।
अज्ञान के कारण ही इंसान मोह-माया
और तृष्णा में फंसा रहता है।
- अज्ञान से छुटकारा पाने के लिए ।
अष्टांग मार्ग का पालन है :
1. सही समझ,
2. सही विचार,
3. सही वाणी,
4. सही कार्य,
5. सही आजीविका,
6. सही प्रयास,
7. सही सजगता और
8. सही एकाग्रता।
- साधना के जरिए सर्वोच्च सिद्ध अवस्था को
पाया जा सकता है। यही अवस्था
बुद्ध कहलाती है।
और इसे कोई भी पा सकता है।
- इस ब्रह्मांड को चलानेवाला कोई नहीं है।
और न ही कोई बनानेवाला है।
- न तो ईश्वर है और न ही आत्मा। जिसे लोग
आत्मा समझते हैं, वह चेतना का प्रवाह है।
यह प्रवाह कभी भी रुक सकता है।
- भगवान और भाग्यवाद कोरी कल्पना है।
जो हमें जिंदगी की सचाई और असलियत से
अलग कर दूसरे पर निर्भर बनाती है।
- पांचों इंद्रियों की मदद से जो ज्ञान मिलता है।
उसे आत्मा मान लिया जाता है। असल में बुद्धि
ही जानती है कि क्या है और क्या नहीं।
बुद्धि का होना ही सत्य है। बुद्धि से ही यह
समस्त संसार प्रकाशवान है।
- न यज्ञ से कुछ होता है और न ही धार्मिक
किताबों को पढ़ने मात्र से। धर्म की किताबों को
गलती से परे मानना नासमझी है।
पूजा-पाठ से पाप नहीं धुलते।
- जैसा मैं हूं, वैसे ही दूसरा प्राणी है। जैसे दूसरा
प्राणी है, वैसा ही मैं हूं इसलिए न किसी को
मारो, न मारने की इजाजत दो।
- किसी बात को इसलिए मत मानो कि दूसरों ने
ऐसा कहा है या यह रीति-रिवाज है या बुजुर्ग
ऐसा कहते हैं या ऐसा किसी धर्म प्रचारक का
उपदेश है। मानो उसी बात को, जो कसौटी पर
खरी उतरे। कोई परंपरा या रीति-रिवाज
अगर मानव कल्याण के खिलाफ है।
तो उसे मत मानो।
- खुद को जाने बगैर आत्मवान नहीं हुआ जा
सकता। निर्वाण की हालत में ही खुद को जाना
जा सकता है।
- इस ब्रह्मांड में सब कुछ क्षणिक और नश्वर है।
कुछ भी स्थायी नहीं। सब कुछ लगातार
बदलता रहता है।
- एक धूर्त और खराब दोस्त जंगली जानवर से
भी बदतर है, क्योंकि जानवर आपके शरीर को
जख्मी करेगा, जबकि खराब दोस्त दिमाग को
जख्मी करेगा।
- आप चाहे कितने ही पवित्र और अच्छे शब्द पढ़
लें या बोल लें, लेकिन अगर उन पर अमल न
करें, तो कोई फायदा नहीं।
- सेहत सबसे बड़ा तोहफा है, संतुष्टि सबसे बड़ी
दौलत और वफादारी सबसे अच्छा रिश्ता है।
- अमीर और गरीब, दोनों से एक जैसी
सहानुभूति रखो क्योंकि हर किसी के पास
अपने हिस्से का दुख और तकलीफ है।
बस किसी के हिस्से ज्यादा तकलीफ आती है,
तो किसी के कम।
- हजारों लड़ाइयां जीतने से बेहतर खुद पर जीत
हासिल करना है। आपकी इस जीत को न
देवता छीन सकते हैं, न दानव, न स्वर्ग मिटा
सकता है, न नरक।
- इंसान को गलत रास्ते पर ले जानेवाला उसका
अपना दिमाग होता है, न कि उसके दुश्मन।
- शक से बुरी आदत कोई नहीं होती।
यह लोगों के दिलों में दरार डाल देती है।
यह ऐसा जहर है,जो रिश्तों को
कड़वा कर देता है। ऐसा कांटा है,
जो घाव और तकलीफ देता है। यह ऐसी
तलवार है, जो मार डालती है।
- गुस्से के लिए आपको सजा नहीं दी जाएगी,
बल्कि खुद गुस्सा आपको सजा देगा।
बुध्दम् शरणम् गच्छामि
धम्मम् शरणम् गच्छामि
संघम् शरणम् गच्छामि
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Saturday, November 26, 2016

बुद्ध ने ऐसा क्या कहा ?

*आखिर बुद्ध ने ऐसा क्या कहा, मानवता को ऐसा क्या दिया कि कोई भी सहज और सरल व्यक्ति बिना किसी दबाव के बुद्धानुयाई बनने को स्वत: सहमत होने लगता है। मेरी विनम्र दृष्टि में इसके निम्न प्रमुख कारण हैं:—*
*1. धर्म मानव का स्वभाव है बुद्ध कहते हैं, धर्म सिद्धान्त नहीं, ?मानव स्वभाव है। मानव के भीतर धर्म रात—दिन बह रहा है। ऐसे में सिद्धान्तों से संचालित किसी भी धर्म को धर्म कहलाने का अधिकार नहीं। उसे धर्म मानने की जरूरत ही नहीं है। धर्म के नाम पर किसी प्रकार की मान्यताओं को ओढने या ढोने की जरूरत ही नहीं है। अपने आप में मानव का स्वभाव ही धर्म है।
*2. मानो मत, जानो बुद्ध कहते हैं, अपनी सोच को मानने के बजाय जानने की बनाओ। इस प्रकार बुद्ध वैज्ञानिक बन जाते हैं। अंधविश्वास और पोंगापंथी के स्थान पर बुद्ध मानवता के बीच विज्ञान को स्थापित करते हैं। बुद्ध ने धर्म को विज्ञान से जोड़कर धर्म को अंधभक्ति से ऊपर उठा दिया। बुद्ध ने धर्म को मानने या आस्था तक नहीं रखा, बल्कि धर्म को भी विज्ञान की भांति सतत खोज का विषय बना दिया। कहा जब तक जानों नहीं, तब तक मानों नहीं। बुद्ध कहते हैं, ठीक से जान लो और जब जान लोगे तो फिर मानने की जरूरत नहीं होगी, क्योंकि जानने के बाद तो मान ही लोगे। बुद्ध वैज्ञानिक की तरह से धर्म की बात कहते हैं। इसीलिए बुद्ध नास्तिकों को भी प्रिय हैं।
*3. परम्परा नहीं मौलिकता बुद्ध मौलिकता पर जोर देते हैं, पुरानी लीक को पीटने या परम्पराओं को अपनाने पर बुद्ध का तनिक भी जोर नहीं है। इसीलिये बुद्ध किसी भी उपदेश या तथ्य को केवल इस कारण से मानने को नहीं कहते कि वह बात वेद या उपनिषद में लिखी है या किसी ऋषी ने उसे मानने को कहा है। बुद्ध यहां तक कहते हैं कि स्वयं उनके/बुद्ध के द्वारा कही गयी बात या उपदेश को भी केवल इसीलिये मत मान लेना कि उसे मैंने कहा है। बुद्ध कहते हैं कि इस प्रकार से परम्परा को मान लेने की प्रवृत्ति अन्धविश्वास, ढोंग और पाखण्ड को जन्म देती है। बुद्ध का कहना है कि जब तक खुद जान नहीं लो किसी बात को मानना नहीं। यह कहकर बुद्ध अपने उपदेशों और विचारों का भी अन्धानुकरण करने से इनकार करते हैं। विज्ञान भी यही कहता है।
*4. दृष्टा बनने पर जोर बुद्ध दर्शन में नहीं उलझाते, बल्कि उनका जोर खुद को, खुद का दृष्टा बनने पर है। बुद्ध दार्शनिकता में नहीं उलझाते। बुद्ध कहते हैं कि जिनके अन्दर, अपने अन्दर के प्रकाश को देखने की प्यास है, वही मेरे पास आयें। उनका अभिप्राय उपदेश नहीं ध्यान की ओर है, क्योंकि ध्यान से अन्तरमन की आंखें खुलती हैं। जब व्यक्ति खुद का दृष्टा बनकर खुद को, खुद की आंखों से देखने में सक्षम हो जाता है तो वह सारे दर्शनों और पूर्वाग्रहों से मुक्त होकर सत्य को देखने में समर्थ हो जाता है। इसलिये बुद्ध बाहर के प्रकाश पर जोर नहीं देते, बल्कि अपने अन्दर के प्रकाश को देखने की बात कहते हैं। अत: खुद को जानना उनकी सर्वोच्च प्राथमिकता है।
*5. मानवता सर्वोपरि बुद्ध कहते है-सिद्धांत मनुष्य के लिये हैं। मनुष्य सिद्धांत के लिये नहीं। बुद्ध के लिये मानव और मानवता सर्वोच्च है। इसीलिय बुद्ध तत्कालीन वैदिक वर्णव्यवस्था और आश्रम-व्यवस्था को भी नकार देते हैं, क्योंकि बुद्ध की दृष्टि में सिद्धान्त नहीं, मानव प्रमुख है। मानव की आजादी उनकी प्राथमिकता है। बुद्ध कहते हैं, वर्णव्यवस्था और आश्रम-व्यवस्था मानव को गुलाम बनाती है। अत: बुद्ध की दृष्टि में वर्णव्यवस्था, आश्रम-व्यवस्था जैसे मानव निर्मित सिद्धान्त मृत शरीर के समान हैं। जिनको त्यागने में ही बुद्धिमता है। यहां तक कि बुद्ध की नजर में शासक का कानून भी उतना मूल्यवान नहीं है, जितना मनुष्य है। यदि कानून सहज मानव जीवन में दखल देता है, तो उस कानून को अविलम्ब बदला जाना जरूरी है।
*6. स्वप्नवादी नहीं, यथार्थवादी बुद्ध ने सपने नहीं दिखाये, हमेशा यथार्थ पर जोर दिया, मानने पर नहीं, जानने पर जोर दिया। ध्यान और बुद्धत्व को प्राप्त होकर भी बुद्ध ने अपनी जड़ें जमीन में ही जमाएं रखी। उन्होंने मानवता के इतिहास में आकाश छुआ, लेकिन काल्पनिक सिद्धान्तों को आधार नहीं बनाया। बुद्ध स्वप्नवादी नहीं बने, बल्कि सदैव यथार्थवादी ही बने रहे। यही वजह है कि बुद्ध का प्रकाश संसार में फैला।
*7. ईश्वर की नहीं, खुद की खोज बुद्धकाल वैदिक परम्पराओं से ओतप्रोत था। अत: अनेकों बार, अनकों लोगों ने बुद्ध से ईश्वर को जानने के बारे में पूछा। लोग जानने आते थे कि ईश्वर क्या है और ईश्वर को केसे पाया जाये? बुद्ध ने हर बार, हर एक को सीधा और सपाट जवाब दिया—व्यर्थ की बातें मत पूछो। पहले ध्यान में तो उतरो, पहले अपने अंतस की चेतना को तो समझो। पहले अपनी खोज तो करो। जब खुद को जान जाओगे तो ऐसे व्यर्थ के सवाल नहीं पूछोगे।
*8. अच्छा और बुरा, पाप और पुण्य बुद्ध किसी जड़ सिद्धान्त या नियम के अनुसार जीवन जीने के बजाय मानव को बोधपूर्वक जीवन जीने की सलाह देते हैं। बुद्ध कहते हैं, जो भी काम करें बोधपूर्वक करें, होशपूर्वक क्योंकि बोधपूर्वक किया गया कार्य कभी भी बुरा नहीं हो सकता। जितने भी गलत काम या पाप किये जाते हैं, सब बोधहीनता या बेहोशी में किये जाते हैं। इस प्रकार बुद्ध ने अच्छे और बुरे के बीच के भेद को समझाने के लिये बोधपूर्वक एवं बोधहीनता के रूप में समझाया। बुद्ध की दृष्टि में प्रेम, करुणा, मैत्री, होश, जागरूकता से होशपूर्वक बोधपूर्वक किया गया हर कार्य अच्छा, श्रृेष्ठ और पुण्य है। बुद्ध की दृष्टि में क्रोध, मद, बेहोशी, मूर्छा, विवेकहीनता से बोधहीनता पूर्वक किया गया कार्य बुरा, निकृष्ट और पाप है।
*9. कठिन नहीं सहजता बुद्ध जीवन की सहजता के पक्ष में हैं, न कि असहज या कठिन या दु:खपूर्ण जीवन जीने के पक्षपाती। बुद्ध कहते हैं, कोई लक्ष्य कठिन है इस कारण वह सही ही है और इसी कारण उसे चुनोती मानकर पूरा किया जाये। यह अहंकार का भाव है। इससे अहंकार का पोषण होता है। इससे मानव जीवन में सहजता, करुणा, मैत्री समाप्त हो जाते हैं। अत: मानव जीवन का आधार सहजता, सरलता, सुगमता है मैत्रीभाव और प्राकृतिक होना चाहिये।
*10. अंधानुकरण नहीं:* बुद्ध कहते हैं, मैंने जो कुछ कहा है हो सकता है, उसमें कुछ सत्य से परे हो! कुछ ऐसा हो जो सहज नहीं हो। मानव जीवन के लिये उपयुक्त नहीं हो और जीवन को सरल एवं सहज बनाने में बाधक हो, तो उसे सिर्फ इसलिये कि मैंने कहा है, मानना बुद्धानुयाई होने का सबूत नहीं है। सच्चे बुद्धानुयाई को संदेह करने और स्वयं सत्य जानने का हक है। अत: जो मेरा अंधभक्त है, वह बुद्ध कहलाने का हकदार नहीं।
*उपरोक्त बातों को जानने के बाद कौन होगा, जिसे बुद्ध प्रिय नहीं होगा? कौन होगा, जिसके अन्तरतम में बुद्ध का निवास नहीं होगा। दु:खद आश्चर्य भारत में बुद्धानुयाई उतने अनुयाई नहीं, जितने भारत के बाहर हैं!*
1. बुद्ध ने नियम और सिद्धान्तों से मुक्त सहजता तथा सरलता से जीवन जीने की बात पर जोर दिया।
2. विश्व में बुद्धानुयाई बनने में कोई अड़चन नहीं। नैतिक चारित्रिक उत्थान के लिए पंचशील है।मैं चोरी नही करूंगा ।मै झूठ नही बोलूंगा।मैं व्यभीचार नही करूंगा।मैं नशा नही करुंगा । मै हिंसा नही करूंगा।
विवेकयुक्त होने के लिए अष्टांग मार्ग दस पारमिताऐ है।

बौद्ध धर्मांतरण करने का रास्ता साफ़

 *! जय भीम !*
         *सुप्रीम कोर्ट के इस निर्णय से बौद्ध धर्मांतरण करने का रास्ता साफ़   हो गया है।अब कोई भी शेड्यूल कास्ट का व्यक्ति अपनी जाती समेत बौद्ध धर्मांतरण कर सकते हैं। जो लोग पहले से बौद्ध हैं उन्हें अब आवेदन फ़ॉर्म मे हिन्दू-महार, चमार, मांग आदि ..लिखकर जाति प्रमाण पत्र लेने की आवश्यकता नही हैं । वे आवेदन फ़ॉर्म के धर्म कॉलम मे बुद्धिस्ट और जाति के कॉलम मे शेड्यूल कास्ट लिस्ट मे आनेवाली अपनी जाती महार, चमार, मांग आदि* ..... *लिखकर क्लिअर कट जाति प्रमाण पत्र ले सकते हैं । इसके बाद आप बौद्ध भी बने रहेंगे और आप को केंद्र और राज्य सरकार के आरक्षण का फ़ायदा पहले जैसा ही मिलते रहेगा*
*1956 के बाद हमारे समाज को लीड करनेवाले प्रथम बौद्ध बनेने का सम्मान पात्र माहाराष्ट्र के बौद्ध धर्मीयों मे ही यदि दुविधा हो तो धर्मांतरण का काम आगे कैसे बढ़ सकता है ? बौद्ध धर्मांतरण करें तो कैसे करें ? आरक्षण जाने का डर और धर्मांतरण या आरक्षण ऐसे दुविधा में फँसे हमारे लोगों के मन मे आज भी बौद्ध धर्मांतरण करने के प्रती डर है* *लेकिन अब हमें डरने की आवश्यकता नही है*।
Supreme Court of India civil appeal no. 4870 of 2015
Mohd. Sadique
 v/s
Darbar Singh Guru
"Scheduled caste person converting to other religion still retains his Scheduled caste status ."
This is the only concept to unite 1108 Scheduled caste and their total near about 22 cr. in India into separate religious umbrella.
Thanks and Regards,
Sumit Pachkhande
Advocate
Supreme Court of India
Mob:- 08585961232

*मेरी सभी से विनंती है की इस जानकारी को ज्यादा से ज्यादा प्रसारीत करे ताकी ज्यादा से ज्यादा बहुजनो को इसका लाभ मिल सके*। 🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻

बौध गया

बौध गया


बिहार राज्य में हिन्दुओ के प्रमुख तीर्थ गया से सटा बौध गया एक छोटा किन्तु प्रमुख शहर है। बौध धर्म में बौध गया को अत्यन्त पवित्र एवं प्रमुख तीर्थ माना गया है। कहते हैं कि करीब 500 ई0 पू0 गौतम बुद्ध यहीं पर फाल्गु नदी के तट पर बोधि पेड़ के नीचे तपस्या करने बैठे थे, इसी पेड़ के नीचे उन्हे ज्ञान की प्राप्ति हुयी थी जिसके बाद वह भगवान बुद्ध कहलाने लगे तभी से यह स्थल बौध धर्म के अनुयायीयों के लिये अत्यन्त श्रद्धा एवं भक्ति का केन्द्र बन गया है।

ज्ञान प्राप्ति के बाद वे अगले सात सप्ताह तक उरुवेला के नजदीक ही चिंतन करते रहे इसके बाद सर्वप्रथम सारनाथ जा कर उन्होने वहाँ पर अपना पहला प्रवचन दिया तथा बौध धर्म का प्रचार प्रसार शुरु किया।

जिस स्थान में भगवान बुद्ध ने वैशाख महीने में पूर्णिमा के दिन ज्ञान प्राप्त किया था वह स्थान बौध गया तथा वह दिन बुद्ध पूर्णिमा के नाम से जाना जाता है।

बौध गया का सबसे प्रमुख मन्दिर महा बोधि मन्दिर है। ऐसा विश्वास है कि महाबोधि मन्दिर में स्थापित बुद्ध की मूर्ति का संबध साक्षात भगवान बुद्ध से है। एक बार भगवान बुद्ध एक बौध भिक्षु के सपने में आये और कहा कि इस मूर्ति का निर्माण स्वंय उन्होने हीे किया है। भगवान बुद्ध की इस मूर्ति को बौध धर्म में सर्वधिक प्रतिष्ठा प्राप्त है तथा नालन्दा और विक्रमशिला के बौध मन्दिरों में भी इसी का प्रतिरुप स्थापित है। सन् 2002 में यूनेस्को ने इस मन्दिर एवं क्षेत्र को विश्व विरासत स्थल घोषित किया है।

कहते है कि भगवान बुद्ध के ज्ञान प्राप्ति के लगभग 250 साल बाद सम्राट अशोक बौध गया आये थे तथा उन्होने हीे महाबोधि मन्दिर का निर्माण कराया था। यह मन्दिर यहाँ का प्रमुख मन्दिर है। इस मन्दिर में भगवान बुद्ध की पदमासन की मुद्रा में एक बहुत बड़ी मूर्ति स्थापित है। कहते है कि यहाँ मूर्ति उसी जगह स्थापित है जहाँ भगवान बुद्ध को ज्ञान प्राप्त हुआ था। मन्दिर के चारों ओर पत्थर की शानदार नक्काशीदार रेलिंग बनी है जो बौधगया में प्राप्त सबसे प्राचीन अवशेष है। इस मन्दिर के दक्षिण पूर्व में एक सुन्दर पार्क है जहाँ बौध भिक्षु ध्यान साधना करते है। इस मन्दिर परिसर में उन सात स्थानों को भी चिन्हित किया गया है जहाँ बुद्ध ने ज्ञान प्राप्ति के बाद सात सप्ताह व्यतीत किये थे। वह बोधि वृक्ष (पीपल का वृक्ष) जिसके नीचे भगवान बुद्ध को ज्ञान प्राप्त हुआ था मुख्य मन्दिर के पीछे स्थित है, वर्तमान मंे उस बोधि वृक्ष की पाँचवी पीढ़ी है।

मुख्य मन्दिर के पीछे भगवान बुद्ध की लाल बलुए पत्थर की 7 फिट ऊँची मूर्ति है जो विजरासन मुद्रा में स्थापित है। कहते है कि तीसरी ई0 पू0 में सम्राट अशोक ने यहाँ पर हीरे से बना राज सिंहासन लगवाया था तथा इसे पृथ्वी का नाभि केन्द्र कहा था। इस मूर्ति के आगे भूरे बलुए पत्थर पर बुद्ध के विशाल पद चिन्ह बने है जिन्हे धर्मचक्र परिवर्तन का प्रतीक भी माना गया है।

यहाँ पर इसके अतिरिक्त तिब्बतियन मठ बर्मी विहार, जापानी मन्दिर, चीनी मन्दिर, थाई मठ, भूटानी मठ एवं वियतनामी मन्दिर भी अति दर्शनीय है।

बौध गया में प्रत्येक वर्ष लाखों लोग विश्व के कोने कोने से यहाँ आकर भगवान बुद्ध के शान्त एवं दिव्य स्वरुप के दर्शन कर असीम सुख एवं शान्ति का अनुभव करते है।

बुद्ध पूजा के स्थान पर लक्ष्मी-गणेश पूजा शुरू

*दीप्दानोत्सव ( दीपावली ) :*

1. सही अर्थ में दीपावली को दिप्दानोत्सव कहा जाता है ।

2. यह एक बौद्ध त्यौहार है ।

3. इसकी शुरुवात प्रसिद्द बौद्ध सम्राट अशोक ने 258 ईसा पूर्व में की थी ।

4. महामानव बुद्ध अपने जीवन में चौरासी हज़ार गाथाएं कहे थे ।

5. अशोक महान ने चौरासी हज़ार बुद्ध बचन के प्रतिक के रूप में चौरासी हज़ार विहार, स्तूप और चैत्यों का निर्माण करवाया था । पाटलिपुत्र का अशोकाराम उन्होंने स्वयं के निर्देशन में बनवाया था ।

6. सभी निर्माण पूर्ण हो जाने के बाद अशोक महान ने कार्तिक अमावश्या को एक भब्य उद्घाटन महोत्सव का आयोजन किया । इस महोत्सव के दिन सारे नगर, द्वार, महल तथा विहारों एवं स्तूपों को दीप माला एवं पुष्प माला से अलंकृत किया गया तथा सम्राज्य के सारे वासी इसे एक त्यौहार के रूप में हर्सोल्लास के साथ मनाये ।

7. प्रत्येक घरों में स्तूप के मोडल के रूप में आँगन अथवा द्वार पर स्तूप बनाया गया जिसे आज किला, घर कुंडा अथवा घरौंदा कहा जाता है ।

8. इस दिन उपसोथ (भिक्खुओं के सानिध्य में घर अथवा विहार में धम्म कथा सुनना) किया गया, बुद्ध वंदना किया गया तथा भिक्खुओं को कल्याणार्थ दान दिए गए ।

9. इस बौद्ध पर्व को दिप्दानोत्सव कहा गया । इसी दिन से प्रत्येक वर्ष यह त्यौहार मनाये जाने की परंपरा शुरु हुई ।

10. कार्तिक माह वर्षा ऋतू समाप्ति के बाद आता है । इस माह में बरसात के दौरान घर -मोहल्ला में जमा गंदगी, गलियों के कचरे के ढेर, तथा घरों के दीवारों और छतों पर ज़मी फफूंदी, दीवारों पर पानी के रिसाव के कारन बने बदरंग दाग-धब्बे आदि की साफ -सफाई की जाती है । रंग -रोगन किये जाते हैं । इसके बाद एक नई ताजगी का अनुभव होता है । यही कारण है कि अशोक महान ने सभी निर्माणों के उद्घाटन के लिए यह माह चुना था ।

11. कृष्ण पक्ष की अमावश्या की रात्रि घनघोर कालिमा समेटे होती है । यह ब्राह्मणवादी अज्ञान और अन्धकारयुक्त युग का प्रतिक है । इसी दिन स्तूपों विहारों का उद्घाटन कर नगर में दीप जला कर उजाला किया गया । दीपक की लौ प्रकाश ज्ञान और खुशहाली का प्रतिक है । इस प्रकार कार्तिक कृष्ण पक्ष अमावश्य को बुद्ध देशना के प्रेरणा स्रोत नव निर्मित विहारों, स्तूपों का दिप्दानोत्सव के साथ उदघाटन कर अशोक महान ने ब्राह्मणी युग रूपी अंधकार का पलायन और समतामूलक नए युग के आगमन का पुरे जम्बुद्वीप में दुदुम्भी बजा कर स्वागत का सन्देश दिया था ।                                                  
14. लेकीन मौर्य साम्राज्य के पतन और ब्राह्मण राज के आगमन के बाद दिप्दानोत्सव दिवस का ब्राह्मणी करण कर दिया गया ।

15. बुद्ध पूजा के स्थान पर लक्ष्मी-गणेश पूजा शुरू हो गया । दान के स्थान पर जुंआ प्रारंभ हो गया । शांति की जगह अशांति के प्रतिक पठाखे छूटने लगे । ब्राह्मण-बनिया के गठजोड़ से धनतेरस के नाम पर भोले-भाले लोगों को लूटने की परंपरा बहाल कर दी गई ।

16 बुद्ध के चौरासी हज़ार देशना को चौरासी लाख योनी का नाम दे दिया गया ।

17. इस प्रकार धम्म बंधुओं ! दिप्दानोत्सव का पवित्र बौध पर्व ब्राह्मणी पर्व दीपावली में बदल गया और इसका सम्बन्ध राम -सीता से जोड़ दिया गया ।

*एक विनम्र अपील*

18. इस बौद्ध पर्व के गौरव को लौटाने के लिए हमें इसे बुद्ध संस्कृति के अनुसार मानना होगा ।

19. बुद्ध वंदना, धम्म वंदना, संघ वंदना, त्रिशरण, पंचशील का घर पर, विहार में सामूहिक पाठ करें । 22 प्रतिज्ञाओं का पाठ करें । गरीबों, भिक्खुओं को दान दें । साफ श्वेत कपडा पहनें, मीठा भोजन करें, करवाएं, घरों पर पंचशील ध्वज लगायें ।

20. पठाखा न छोडें, जुआ ना खेलें और मांस मदिरा का सेवन न करे  ।

🙏🏻भवतु सब्ब मङ्गलं🙏🏻

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बुद्ध वन्दना

*बुद्ध वन्दना*

नमो तस्स भगवतो अरहतो सम्मा सम्बुद्धस्स ।                  नमो तस्स भगवतो अरहतो सम्मा सम्बुद्धस्स ।            
नमो तस्स भगवतो अरहतो सम्मा सम्बुद्धस्स ।

*अर्थ:*--- उन भगवन अर्हत सम्यक सम्बुद्ध को नमस्कार।

           उन भगवन अर्हत सम्यक सम्बुद्ध को नमस्कार।

           उन भगवन अर्हत सम्यक सम्बुद्ध को नमस्कार।

           *त्रिशरण*
       
*बुद्धं सरणं गच्छामि।*
*धम्म सरणं गच्छामि।*
*संघ  सरणं गच्छामि।*

दुतियम्पि बुद्धं सरणं गच्छामि।
दुतियम्पि धम्म सरणं गच्छामि।
दुतियम्पि संघ  सरणं गच्छामि।
ततियम्पि  बुद्धं सरणं गच्छामि।
ततियम्पि  धम्म सरणं गच्छामि।
ततियम्पि  संघ  सरणं गच्छामि।

*अर्थ:--*

 मैं बुद्ध की शरण में जाता हूं।
मैं धम्म की शरण में जाता हूँ।
मैं संघ की शरण में जाता हूँ।

मैं दूसरी बार भी बुद्ध की शरण में जाता हूँ।
मैं दूसरी बार भी धम्म की शरण में जाता हूँ।
मैं दूसरी बार भी संघ की शरण में जाता हूँ।
मैं तीसरी बार भी बुद्ध की शरण में जाता हूँ।
मैं तीसरी बार भी धम्म की शरण में जाता हूँ।
मैं तीसरी बार भी संघ की शरण में जाता हूँ।

                   *पंचशील*

*पाणतिपाता वेरमणी सिक्खापदं समादियामि।*
      *अदिन्नादाना  वेरमणी सिक्खापदं समादियामि।*
     *कामेसु मिच्छाचारा  वेरमणी सिक्खापदं समादियामि।*
    *मुसावादा वेरमणी सिक्खापदं समादियामि।*
     *सुरा-मेरय-मज्ज-पमादट्ठानावेरमणी सिक्खापदं समादियामि।*
                      *भवतु सब्ब मंगलं।*

अर्थ:-- *मैं अकारण प्राणी हिंसा से दूर रहने की शिक्षा ग्रहण करता हूँ।*
         *मैं बिना दी गयी वस्तु को न लेने की शिक्षा ग्रहण करता हूँ।*
           *मैं कामभावना से विरत रहने की शिक्षा ग्रहण करता हूँ।*
              *मैं झूठ बोलने और चुगली करने से विरत रहने की शिक्षा ग्रहण करता हूँ।*
                *मैं कच्ची-पक्की शराब,नशीली वस्तुओं के प्रयोग से विरत रहने की शिक्षा ग्रहण करता हूँ।*
                         *सबका मंगल हो।*

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